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पंचम स्थान — द्वितीय उद्देश
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३. अत्थेगइया णिग्गंथा य णिग्गंथीओ य णागकुमारावासंसि वा सुवण्णकुमारावासंसि वा वासं उवागता, तत्थेगओ ( ठाणं वा सेज्जं वा णिसीहियं वा चेतेमाणा ) णातिक्कमंति ।
४. आमोसगा दीसंति, ते इच्छंति णिग्गंथीओ चीवरपडियाए, पडिगाहित्तए, तत्थेगओ ठाणं वा (सेजं वा णिसीहियं वा चेतेमाणा ) णातिक्कमंति ।
५. जुवाणा दीसंति, ते इच्छंति णिग्गंथीओ मेहुणपडियाए पडिगाहित्तए, तत्थेगओ ठाणं वा (सेज्जं वा णिसीहियं वा चेतेमाणा ) णातिक्कमंति ।
इच्चेतेहिं पंचहि ठाणेहिं ( णिग्गंथा, णिग्गंथीओ य एगतओ ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चे माणा ) णातिक्कमंति ।
पाँच कारणों से निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियाँ एक स्थान पर अवस्थान, शयन और स्वाध्याय करते हुए भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते हैं, जैसे—
१. . यदि कदाचित् कुछ निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियाँ किसी बड़ी भारी, ग्राम-शून्य, आवागमनरहित, लम्बे मार्ग वाली अटवी (वनस्थली) में अनुप्रविष्ट हो जावें, तो वहाँ एक स्थान पर अवस्थान, शयन और स्वाध्याय करते हुए भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते हैं।
- २. यदि कुछ निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियाँ किसी ग्राम में, नगर में, खेट में, कर्वट में, मडम्ब में, पत्तन में, आकर में, द्रोणमुख में, निगम में, आश्रम में, सन्निवेश में अथवा राजधानी में पहुँचें, वहाँ दोनों में से किसी एक वर्ग को उपाश्रय मिला और एक को नहीं मिला, तो वे एक स्थान पर अवस्थान, शयन और स्वाध्याय करते हुए भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते हैं ।
३. यदि कदाचित् कुछ निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियाँ नागकुमार के आवास में या सुपर्णकुमार के ( या किसी अन्य देव के) आवास में निवास के लिए एक साथ पहुँचें तो वहाँ अतिशून्यता से, या अतिजनबहुलता आदि कारण से निर्ग्रन्थियों की रक्षा के लिए एक स्थान पर अवस्थान, शयन और स्वाध्याय करते हुए भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते हैं ।
४. ( यदि कहीं आरक्षित स्थान पर निर्ग्रन्थियाँ ठहरी हों, और वहाँ ) चोर-लुटेरे दिखाई देवें, वे निर्ग्रन्थियों के वस्त्रों को चुराना चाहते हों तो वहाँ एक स्थान पर अवस्थान, शयन और स्वाध्याय करते हुए भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते हैं।
५. (यदि किसी स्थान पर निर्ग्रन्थियाँ ठहरी हों, और वहाँ पर ) गुंडे युवक दिखाई देवें, वे निर्ग्रन्थियों के साथ मैथुन की इच्छा से उन्हें पकड़ना चाहते हों, तो वहाँ निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियाँ एक स्थान पर अवस्थान, शयन और स्वाध्याय करते हुए भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते हैं।
इन पाँच कारणों से निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियाँ, एक स्थान पर अवस्थान, शयन और स्वाध्याय करते हुए भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते हैं (१०७)।
१०८ - पंचहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे अचेलए सचेलियाहिं णिग्गंथीहि सद्धिं संवसमाणे णातिक्कमति, तं जहा