Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पंचम स्थान—प्रथम उद्देश
आगम - गम्य हैं, हमारे लिए वे हेतुगम्य नहीं हैं।
प्रस्तुत सूत्रों में हेतु और हेतुवादी ( हेतु का प्रयोग करने वाला) ये दोनों ही हेतु शब्द से विवक्षित हैं। जो हेतुवादी असम्यग्दर्शी या मिथ्यादृष्टि होता है, वह कार्य को जानता देखता तो है, परन्तु उसके हेतु को नहीं जानतादेखता है। वह हेतु-गम्य पदार्थ को हेतु के द्वारा नहीं जानता- देखता किन्तु जो हेतुवादी सम्यग्दर्शी या सम्यग्दृष्टि होता है, वह कार्य के साथ-साथ उसके हेतु को भी जानता - देखता है। वह हेतु - गम्य पदार्थ को हेतु द्वारा जानता-देखता
है।
परोक्ष ज्ञानी जीव ही हेतु के द्वारा परोक्ष वस्तुओं को जानते-देखते हैं । किन्तु जो प्रत्यक्षज्ञानी होते हैं, वे प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं को जानते-देखते हैं। प्रत्यक्षज्ञानी भी दो प्रकार से होते हैं—– देशप्रत्यक्षज्ञानी और सकलप्रत्यक्षज्ञानी । देशप्रत्यक्षज्ञानी धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों की अहेतुक या स्वाभाविक परिणतियों को आंशिकरूप से ही जानतादेखता है, पूर्णरूप से नहीं जानता - देखता । वह अहेतु (प्रत्यक्ष ज्ञान) के द्वारा अहेतुगम्य पदार्थों को सर्वभावेन नहीं जानता- देखता । किन्तु जो सकल प्रत्यक्षज्ञानी सर्वज्ञकेवली होता है, वह धर्मास्तिकाय आदि अहेतुगम्य पदार्थों की अहेतुक या स्वाभाविक परिणतियों को सम्पूर्ण रूप से जानता- देखता है। वह प्रत्यक्षज्ञान के द्वारा अहेतुगम्य पदार्थों को सर्वभाव से जानता - देखता है।
उक्त विवेचन का निष्कर्ष यह है कि प्रारम्भ के दो सूत्र असम्यग्दर्शी हेतुवादी की अपेक्षा से और तीसराचौथां सूत्र सम्यग्दर्शी हेतुवादी की अपेक्षा से कहे गये हैं। पांचवा - छठां सूत्र देशप्रत्यक्षज्ञानी छद्मस्थ की अपेक्षा से और सातवां-आठवां सूत्र सकलप्रत्यक्षज्ञानी सर्वज्ञ केवली की अपेक्षा से कहे गये हैं ।
उक्त आठों सूत्रों का पांचवां भेद मरण सम्बन्ध रखता है । मरण दो प्रकार का कहा गया है — सहेतुक (सोपक्रम) और अहेतुक (निरुपक्रम) । शस्त्राघात आदि बाह्य हेतुओं से होने वाले मरण को सहेतुक, सोपक्रम या अकालमरण कहते हैं। जो मरण शस्त्राघात आदि बाह्य हेतुओं के बिना आयुकर्म के पूर्ण होने पर होता है, वह अहेतुक, निरुपक्रम या यथाकाल मरण कहलाता है । असम्यग्दर्शी हेतुवादी का अहेतुक मरण अज्ञानमरण कहलाता है और सम्यग्दर्शी हेतुवादी का सहेतुकमरण छद्मस्थमरण कहलाता है । देशप्रत्यक्षज्ञानी का सहेतुकमरण भी छद्मस्थमरण कहा जाता है । सकलप्रत्यक्षज्ञानी सर्वज्ञ का अहेतुक मरण केवलि - मरण कहा जाता है।
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संस्कृत टीकाकार श्री अभयदेवसूरि कहते हैं कि हमने उक्त सूत्रों का यह अर्थ भगवती सूत्र के पंचम शतक के सप्तम उद्देशक की चूर्णि के अनुसार लिखा है, जो कि सूत्रों के पदों की गमनिका मात्र है। इन सूत्रों का वास्तविक अर्थ तो बहुश्रुत आचार्य ही जानते हैं।
अनुत्तर-सूत्र
८३ – केवलिस्स णं पंच अणुत्तरा पण्णत्ता, तं जहा—अणुत्तरे णाणे, अणुत्तरे दंसणे, अणुत्तरे चरित्ते, अणुत्तरे तवे, अणुत्तरे वीरिए ।
१.
२.
'पंच हेऊ' इत्यादि सूत्रनवकम । तत्र भगवतीपञ्चमशतसप्तमोद्देशकचूर्ण्यनुसारेण किमपि लिख्यते ।
(स्थानाङ्ग सटीक पृ. २९१ ए)
गमनिकामात्रमेतत् । तत्त्वं तु बहुश्रुता विदन्तीति । ( स्थानाङ्ग सटीक, पृ. २९२ ए)