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स्थानाङ्गसूत्रम्
अनुपम ) कहे गये हैं, जैसे
केवली के पांच स्थान अनुत्तर (सर्वोत्तम १. अनुत्तर ज्ञान, २. अनुत्तर दर्शन, ३. अनुत्तर चारित्र, ४. अनुत्तर तप, ५. अनुत्तर वीर्य (८३) ।
विवेचन — चार घातिकर्मों का क्षय करने वाले केवली होते हैं। इनमें से ज्ञानावरणकर्म के क्षय से अनुत्तर ज्ञान, दर्शनावरण कर्म के क्षय के अनुत्तर दर्शन, मोहनीय कर्म के क्षय से अनुत्तर चारित्र और तप तथा अन्तराय कर्म क्षय से अनुत्तर वीर्य प्राप्त होता है।
हुआ ।
पंच- कल्याण- सूत्र
८४- पउमप्प णं अरहा पंचचित्ते हुत्था, तं जहा—१. चित्ताहिं चुते चइत्ता गब्धं वक्कंते । २. चित्ताहिं जाते । ३. चित्ताहिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारितं पव्वइए । ४. चित्ताहिं अनंते अणुत्तरे णिव्वाघाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे । ५. चित्ताहिं परिणिव्वुते ।
पद्मप्रभ तीर्थंकर के पंच कल्याणक चित्रा नक्षत्र में हुए, जैसे
१. चित्रा नक्षत्र में स्वर्ग से च्युत हुए और च्युत होकर गर्भ में आये ।
२. चित्रा नक्षत्र में जन्म हुआ ।
३. चित्रा नक्षत्र में मुण्डित होकर अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए ।
४. चित्रा नक्षत्र में अनन्त, अनुत्तर, निर्व्याघात, निरावरण, सम्पूर्ण, परिपूर्ण केवलवर ज्ञान- दर्शन समुत्पन्न
५. चित्रा नक्षत्र में परिनिर्वृत हुए निर्वाणपद पाया (८४) ।
८५- पुप्फदंते णं अरहा पंचमूले हुत्था, तं जहा— मूलेणं चुते चइत्ता गब्धं वक्कंते ।
पुष्पदन्त तीर्थंकर के पांच कल्याणक मूल नक्षत्र में हुए, , जैसे
१. मूल नक्षत्र में स्वर्ग से च्युत हुए और च्युत होकर गर्भ में आये ।
२. मूल नक्षत्र में जन्म लिया ।
३. मूल नक्षत्र में अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए ।
४. मूल नक्षत्र में अनुत्तर परिपूर्ण ज्ञान दर्शन समुत्पन्न हुआ।
५. मूल नक्षत्र में परिनिर्वृत्त हुए निर्वाणपद पाया (८५) ।
८६—
- एवं चेव एवमेतेणं अभिलावेणं इमातो गाहातो अणुगंतव्वातोपउमप्पभस्स चित्ता, मूले पुण होइ पुप्फदंतस्स । पुव्वाइं आसाढा, सीयलस्सुत्तर विमलस्स भद्दवता ॥ १ ॥ रेवतिता अणंतजिणो, पूसो धम्मस्स संतिणो भरणी । कुंथुस्स कत्तियाओ, अरस्स तह रेवतीतो य ॥ २ ॥ मुणिसुव्वयस्स सवणो, आसिणि णमिणो य णेमिणो चित्ता । पासस्स विसाहाओ, पंच य
हत्थुत्तरे वीरो ॥ ३॥