Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पंचम स्थान —प्रथम उद्देश
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स्थावरकाय-सूत्र
१९- पंच थावरकाया पण्णत्ता, तं जहा इंदे थावरकाए, बंभे थावरकाए, सिप्पे थावरकाए, सम्मति थावरकाए, पायावच्चे थावरकाए।
पांच स्थावरकाय कहे गये हैं, जैसे
१. इन्द्रस्थावरकाय-पृथ्वीकाय, २. ब्रह्मस्थावरकाय-अप्काय, ३. शिल्पस्थावरकाय-तेजसकाय, ४. सम्मतिस्थावरकाय-वायुकाय, ५. प्राजापत्यस्थावरकाय-वनस्पतिकाय (१९)।
२०- पंच थावरकायाधिपती पण्णत्ता, तं जहा—इंदे थावरकायाधिपती, जाव (बंभे थावरकायाधिपती, सिप्पे थावरकायाधिपती, सम्मती थावरकायाधिपती), पागावच्चे थावरकायाधिपती।
पांच स्थावरकायों के अधिपति कहे गये हैं, जैसे१. पृथ्वी-स्थावरकायाधिपति- इन्द्र। २. अप्-स्थावरकायाधिपति- ब्रह्मा। ३. तेजस-स्थावरकायाधिपति- शिल्प। ४. वायु-स्थावरकायाधिपति— सम्मति । ५. वनस्पति-स्थावरकायाधिपति- प्राजापत्य (२०)।
विवेचन— उक्त दो सूत्रों में स्थावरकाय और उनके अधिपति (स्वामी) बताये गये हैं। जिस प्रकार दिशाओं के अधिपति इन्द्र, अग्नि आदि हैं, नक्षत्रों के अधिपति अश्वि, यम आदि हैं, उसी प्रकार पांचों स्थावरकायों के अधिपति भी यहाँ पर (२०वें सूत्र में) बताये गये हैं और उनके सम्बन्ध से पृथ्वी आदि को भी इन्द्रस्थावरकाय आदि के नामों से उल्लेख किया गया है। अतिशेषज्ञान-दर्शन-सूत्र
२१- पंचहिं ठाणेहिं ओहिदंसणे समुप्पजिउकामेवि तप्पढमयाए खंभाएजा, तं जहा१. अप्पभूतं वा पुढविं पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा। २. कुंथुरासिभूतं वा पुढविं पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएजा। ३. महतिमहालयं वा महोरगसरीरं पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएजा।
४. देवं वा महिड्डियं जाव (महजुइयं महाणुभागं महायसं महाबलं) महासोक्खं पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा।
५. पुरेसु वा पोराणाइं उरालाई महतिमहालयाई महाणिहाणाइं पहीणसामियाई पहीणसेउयाई पहीणगुत्तागाराइं उच्छिण्णसामियाई उच्छिण्णसेउयाइं उच्छिण्णगुत्तागाराई जाइं इमाइं गामागर-णगरखेड-कब्बड-मंडब-दोणमुहपट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु सिंघाडगतिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु णगर-णिद्धमणेसु सुसाण-सुण्णागार-गिरिकंदर-संति-सेलोवट्टावण-भवण-गिहेसु संणिक्खित्ताइ चिटुंति, ताई वा पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा।