Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पंचम स्थान प्रथम उद्देश
४४३ पुनः श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए पांच (अभिग्रह) स्थान सदा वर्णित किए हैं, कीर्तित किये हैं, व्यक्त किये हैं, प्रशंसित किये हैं और अभ्यनुज्ञात किये हैं, जैसे
१. अज्ञातचरक- अपनी जाति-कुलादि को बताये बिना भिक्षा लेने वाला मुनि। २. अन्यग्लायकचरक- दूसरे रोगी मुनि के लिए भिक्षा लाने वाला मुनि। ३. मौनचरक— बिना बोले मौनपूर्वक भिक्षा लाने वाला मुनि। ४. संसृष्टकल्पिक— भोजन से लिप्त हाथ या कड़छी आदि से भिक्षा लेने वाला मुनि।। ५. तज्जात-संसृष्टकल्पिक- देय द्रव्य से लिप्त हाथ आदि से भिक्षा लेने वाला मुनि (३७)।
३८- पंच ठाणाइं जाव (समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताइं णिच्चं कित्तिताई णिच्चं बुइयाइं णिच्चं पसत्थाई णिच्चं) अब्भणुण्णाताई भवंति, तं जहा—उवणिहिए, सुद्धेसणिए, संखादत्तिए, दिट्ठलाभिए, पुट्ठलाभिए ॥
___ पुनः श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए पांच (अभिग्रह) स्थान सदा वर्णित किये हैं, कीर्तित किये हैं, व्यक्त किये हैं, प्रशंसित किये हैं और अभ्यनुज्ञात किये हैं, जैसे
१. औपनिधिक— अन्य स्थान से लाये और समीप रखे आहार को लेने वाला भिक्षुक। . २. शुद्धैषणिक-निर्दोष आहार की गवेषणा करने वाला भिक्षुक। ३. संख्यादत्तिक– सीमित संख्या में दत्तियों का नियम करके आहार लेने वाला भिक्षुक। ४. दृष्टलाभिक-सामने दीखने वाले आहार-पान को लेने वाला भिक्षुक। ५. पृष्टलाभिक— क्या भिक्षा लोगे?' यह पूछे जाने पर ही भिक्षा लेने वाला भिक्षुक (३८)।
३९- पंच ठाणाई जाव (समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताई णिच्चं कित्तिताइं णिच्चं बुइयाइं णिच्चं पसत्थाई णिच्चं) अब्भणुण्णाताई भवंति, तं जहाआयंबिलिए, णिव्विइए, पुरिमड्डिए, परिमितपिंडवातिए, भिण्णपिंडवातिए ॥
पुनः श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए पांच (अभिग्रह) स्थान सदा वर्णित किये हैं, कीर्तित किये हैं, व्यक्त किये हैं, प्रशंसित किये हैं और अभ्यनुज्ञात किये हैं, जैसे
१. आचाम्लिक— 'आयंबिल' करने वाला भिक्षुक। २. निर्विकृतिक– घी आदि विकृतियों का त्याग करने वाला भिक्षुक। ३. पूर्वाधिक— दिन के पूर्वार्ध में भोजन नहीं करने के नियम वाला भिक्षुक। ४. परिमितपिण्डपातिक- परिमित अन्न-पिंडों या वस्तुओं की भिक्षा लेने वाला भिक्षुक। ५. भिन्नपिण्डपातिक– खंड-खंड किये अन्न-पिण्ड की भिक्षा लेने वाला भिक्षुक।
४०- पंच ठाणाइं जाव (समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताइं णिच्चं कित्तिताइं णिच्चं बुड्याइं णिच्चं पसत्थाई णिच्चं) अब्भणुण्णाताई भवंति, तं जहाअरसाहारे, विरसाहारे, अंताहारे, पंताहारे, लूहाहारे ॥
पुनः श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए पांच (अभिग्रह) स्थान सदा वर्णित किये हैं, कीर्तित