Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
उत्ताण-गंभीर-सूत्र
५८४- चत्तारि उदगा पण्णत्ता, तं जहा—उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोदए, उत्ताणे णाममेगे गंभीरोदए, गंभीरे णाममेगे उत्ताणोदए, गंभीरे णाममेगे गंभीरोदए।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—उत्ताणे णाममेगे उत्ताणहिदए, उत्ताणे णाममेगे गंभीरहिदए, गंभीरे णाममेगे उत्ताणहिदए, गंभीरे णाममेगे गंभीरहिदए।
उदक (जल) चार प्रकार का कहा गया है, जैसे
१. उत्तान और उत्तानोदक– कोई जल छिछला-अल्प किन्तु स्वच्छ होता है, उसका भीतरी भाग दिखाई देता है।
२. उत्तान और गम्भीरोदक— कोई जल अल्प किन्तु गम्भीर (गहरा) होता है अर्थात् मलीन होने से इसका भीतरी भाग दिखाई नहीं देता।
३. गम्भीर और उत्तानोदककोई जल गम्भीर (गहरा) किन्तु स्वच्छ होता है। ४. गम्भीर और गम्भीरोदक- कोई जल गम्भीर और मलिन होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. उत्तान और उत्तानहृदय— कोई पुरुष बाहर से भी अगम्भीर (उथला या तुच्छं) दिखता है और हृदय से भी अगम्भीर (उथला या तुच्छ) होता है।
२. उत्तान और गम्भीरहृदय— कोई पुरुष बाहर से अगम्भीर दिखता है, किन्तु भीतर से गम्भीर हृदय वाला होता है।
३. गम्भीर और उत्तानहृदय— कोई पुरुष बाहर से गम्भीर दिखता है, किन्तु भीतर से अगम्भीर हृदय वाला होता है।
४. गम्भीर और गम्भीरहृदय- कोई पुरुष बाहर से भी गम्भीर होता है और भीतर से भी गम्भीर हृदय वाला होता है (५८४)।
__५८५- चत्तारि उदगा पण्णत्ता, तं जहा–उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोभासी, उत्ताणे णाममेगे गंभीरोभासी, गंभीरे णाममेगे उत्ताणोभासी, गंभीरे णाममेगे गंभीरोभासी।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोभासी, उत्ताणे णाममेगे गंभीरोभासी, गंभीरे णाममेगे उत्ताणोभासी, गंभीरे णाममेगे गंभीरोभासी।
पुनः उदक चार प्रकार का कहा गया है, जैसे- . १. उत्तान और उत्तानावभासी- कोई जल उथला होता है और उथला जैसा ही प्रतिभासित होता है।
२. उत्तान और गम्भीरावभासी—कोई जल उथला होता है, किन्तु स्थान की विशेषता से गहरा प्रतिभासित होता है।
३. गम्भीर और उत्तानावभासी— कोई जल गहरा होता है, किन्तु स्थान की विशेषता से उथला जैसा