Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ स्थान– चतुर्थ उद्देश
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४. तुच्छ और तुच्छरूप- कोई पुरुष धन-श्रुतादि से भी अपूर्ण होता है और वेष-भूषादि रूप से भी अपूर्ण होता है (५९२)।
५९३–चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा—पुण्णेवि एगे पियटे, पुण्णेवि एगे अवदले, तुच्छेवि एगे पियट्टे, तुच्छेवि एगे अवदले।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—पुण्णेवि एगे पियट्टे, पुण्णेवि एगे अवदले, तुच्छेवि एगे पियढे, तुच्छेवि एगे अवदले।
पुनः कुम्भ चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. पूर्ण और प्रियार्थ— कोई कुम्भ जल आदि से पूर्ण होता है और सुवर्णादि-निर्मित होने के कारण प्रियार्थ (प्रीतिजनक) होता है।
२. पूर्ण और अपदल— कोई कुम्भ जल आदि से पूर्ण होने पर भी अपदल (पूर्ण पक्व न होने के कारण असार) होता है।
३. तुच्छ और प्रियार्थ— कोई कुम्भ जलादि से अपूर्ण होने पर भी प्रियार्थ होता है।
४. तुच्छ और अपदल— कोई कुम्भ जलादि से भी अपूर्ण होता है और अपदल (पूर्ण पक्व न होने के कारण असार) होता है।
इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. पूर्ण और प्रियार्थ— कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रुत आदि से भी पूर्ण होता है और प्रियार्थ (परोपकारी होने से प्रिय) भी होता है।
२. पूर्ण और अपदल— कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रुत आदि से पूर्ण होता है, किन्तु अपदल (परोपकारादि न करने से असार) होता है।
__३. तुच्छ और प्रियार्थ— कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रुत आदि से अपूर्ण होने पर भी परोपकारादि करने से प्रियार्थ होता है।
४. तुच्छ और अपदल— कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रुत आदि से भी अपूर्ण होता है और परोपकारादि न करने से अपदल (असार) भी होता है (५९३)।
५९४- चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा—पुण्णेवि एगे विस्संदति, पुण्णेवि एगे णो विस्संदति, तुच्छेवि एगे विस्संदति, तुच्छेवि एगे णो विस्संदति। .
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—पुण्णेवि एगे विस्संदति, (पुण्णेवि एगे णो विस्संदति, तुच्छेवि एगे विस्संदति, तुच्छेवि एगे णो विस्संदति।)
पुनः कुम्भ चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. पूर्ण और विष्यन्दक- कोई कुम्भ जल आदि से पूर्ण होता है और झरता भी है। २. पूर्ण और अविष्यन्दक— कोई कुम्भ जल आदि से पूर्ण होता है और झरता भी नहीं है। ३. तुच्छ और विष्यन्दक- कोई कुम्भ अपूर्ण भी होता है और झरता भी है।