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स्थानाङ्गसूत्रम्
नक्षत्र-सूत्र
६५४- अणुराहाणक्खत्ते चउत्तारे पण्णत्ते। अनुराधा नक्षत्र चार तारे वाला कहा गया है (६५४)। ६५५— पुव्वासाढा (णक्खत्ते चउत्तारे पण्णत्ते)। पूर्वाषाढा नक्षत्र चार तारे वाला कहा गया है (६५५)। ६५६- एवं चेव उत्तरासाढा (णक्खत्ते चउत्तारे पण्णत्ते)।
इसी प्रकार उत्तराषाढा नक्षत्र चार तारे वाला कहा गया है (६५७)। पापकर्म-सूत्र
६५७– जीवा णं चउट्ठाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा–णेरइयणिव्वत्तिते, तिरिक्खजोणियणिव्वत्तिते, मणुस्सणिव्वत्तिते, देवणिव्वत्तिते। ___ जीवों ने चार कारणों से निवर्तित (उपार्जित) कर्म-पुद्गलों को पाप कर्म रूप से भूतकाल में संचित किया है, वर्तमानकाल में संचित कर रहे हैं और भविष्यकाल में संचित करेंगे। जैसे
१. नैरयिक निर्वर्तित कर्मपुद्गल, २. तिर्यग्योनिक निर्वर्तित कर्मपुद्गल, ३. मनुष्य निर्वर्तित कर्मपुद्गल, ४. देवनिर्वर्तित कर्मपुद्गल (६५७) । ६५८— एवं उवचिणिंसु वा उवचिणंति वा उवचिणिस्संति वा। एवं चिण-उवचिण-बंध-उदीर-वेय तह णिजरा चेव।
इसी प्रकार जीवों ने चतुःस्थान निर्वर्तित कर्म पुद्गलों का उपचय, बंध, उदीरण, वेदन और निर्जरण भूतकाल में किया है वर्तमान में कर रहे हैं और भविष्यकाल में करेंगे (६५८)। पुद्गल-सूत्र
६५९– चउपदेसिया खंधा अणंता पण्णत्ता। चार प्रदेश वाले पुद्गलस्कन्ध अनन्त हैं (६५९)। ६६०-चउपदेसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। आकाश के चार प्रदेशों में अवगाहना वाले पुद्गलस्कन्ध अनन्त कहे गये हैं (६६०)। ६६१- चउसमयद्वितीया पोग्गला अणंता पण्णत्ता। चार समय की स्थिति वाले पुद्गलस्कन्ध अनन्त कहे गये हैं (६६१)। ६६२- चउगुणकालगा पोग्गला अणंता जाव चउगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। चार काले गुण वाले पुद्गल अनन्त कहे गये हैं (६६२)। इसी प्रकार सभी वर्ण, सभी गन्ध, सभी रस और सभी स्पर्शों के चार-चार गुण वाले पुद्गल अनन्त कहे गये हैं।
॥ चतुर्थ उद्देश का चतुर्थ स्थान समाप्त ॥