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स्थानाङ्गसूत्रम् एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—पुण्णे णाममेगे पुण्णोभासी, पुण्णे णाममेगे तुच्छोभासी, तुच्छे णाममेगे पुण्णोभासी, तुच्छे णाममेगे तुच्छोभासी।
पुनः कुम्भ (घट) चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. पूर्ण और पूर्णावभासी— कोई कुम्भ आकार से पूर्ण होता है और पूर्ण ही दिखता है। २. पूर्ण और तुच्छावभासी— कोई कुम्भ आकार से पूर्ण होता है, किन्तु अपूर्ण-सा दिखता है। ३. तुच्छ और पूर्णावभासी— कोई कुम्भ आकार से अपूर्ण होता है किन्तु पूर्ण-सा दिखता है। ४. तुच्छ और तुच्छावभासी— कोई कुम्भ आकार से अपूर्ण होता है और अपूर्ण ही दिखता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. पूर्ण और पूर्णावभासी— कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रुत आदि से पूर्ण होता है और उसके यथोचित सदुपयोग करने से पूर्ण ही दिखता है।
२. पूर्ण और तुच्छावभासी— कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रुत आदि से पूर्ण होता है, किन्तु उसका यथोचित सदुपयोग न करने से अपूर्ण-सा दिखता है।
३. तुच्छ और पूर्णावभासी— कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रुत आदि से अपूर्ण होता है, किन्तु प्राप्त यत्किंचित् सम्पत्ति-श्रुतादि का उपयोग करने से पूर्ण सा दिखता है।
४. तुच्छ और तुच्छावभासी— कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रुत आदि से अपूर्ण होता है और प्राप्त का उपयोग न करने से अपूर्ण ही दिखता है (५९१)।
५९२- चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा पुण्णे णाममेगे पुण्णरूवे, पुण्णे णाममेगे तुच्छरूवे, तुच्छे णाममेगे पुण्णरूवे, तुच्छे णाममेगे तुच्छरूवे।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—पुण्णे णाममेगे पुण्णरूवे, पुण्णे णाममेगे तुच्छरूवे, तुच्छे णाममेगे पुण्णरूवे, तुच्छे णाममेगे तुच्छरूवे।
पुनः कुम्भ (घट) चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. पूर्ण और पूर्णरूप— कोई कुम्भ जल आदि से पूर्ण होता है और उसका रूप (आकार) भी पूर्ण होता है। २. पूर्ण और तुच्छरूप— कोई कुम्भ जल आदि से पूर्ण होता है, किन्तु उसका रूप पूर्ण नहीं होता है। ३. तुच्छ और पूर्णरूप— कोई कुम्भ जल आदि से अपूर्ण होता है, किन्तु उसका रूप पूर्ण होता है। ४. तुच्छ और तुच्छरूप- कोई कुम्भ जल आदि से भी अपूर्ण होता है और उसका रूप भी अपूर्ण होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. पूर्ण और पूर्णरूप— कोई पुरुष धन-श्रुत आदि से भी पूर्ण होता है और वेषभूषादि रूप से भी पूर्ण होता
२. पूर्ण और तुच्छरूप-कोई पुरुष धन-श्रुत आदि से पूर्ण होता है, किन्तु वेषभूषादि रूप से अपूर्ण होता है।
३. तुच्छ और पूर्णरूप- कोई पुरुष धन-श्रुत आदि से भी अपूर्ण होता है, किन्तु वेष-भूषादि रूप से पूर्ण होता है।