Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
गंभीरोभासी, गंभीरे णाममेगे उत्ताणोभासी, गंभीरे णाममेगे गंभीरोभासी।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोभासी, उत्ताणे णाममेगे गंभीरोभासी, गंभीरे णाममेगे उत्ताणोभासी, गंभीरे णाममेगे गंभीरोभासी।
पुनः समुद्र चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. उत्तान और उत्तानावभासी— कोई समुद्र उथला होता है और उथला ही प्रतिभासित होता है। २. उत्तान और गम्भीरावभासी— कोई समुद्र उथला होता है, किन्तु गहरा प्रतिभासित होता है। ३. गम्भीर और उत्तानावभासी- कोई समुद्र गम्भीर होता है, किन्तु उथला प्रतिभासित होता है। ४. गम्भीर और गम्भीरावभासी— कोई समुद्र गम्भीर होता है और गम्भीर ही प्रतिभासित होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. उत्तान और उत्तानावभासी- कोई पुरुष उथला होता है और उथला ही प्रतिभासित होता हैं। २. उत्तान और गम्भीरावभासी— कोई पुरुष उथला होता है, किन्तु गम्भीर प्रतिभासित होता है। ३. गम्भीर और उत्तानावभासी— कोई पुरुष गम्भीर होता है, किन्तु उथला प्रतिभासित होता है।
४. गम्भीर और गम्भीरावभासी— कोई पुरुष गम्भीर और गम्भीर प्रतिभासित होता है (५८७)। तरक-सूत्र
५८८- चत्तारि तरगा पण्णत्ता, तं जहा-समुइं तरामीतेगे समुदं तरति, समुदं तरामीतेगे गोप्पयं तरति, गोप्पयं तरामीतेगे समुदं तरति, गोप्पयं तरामीतेगे गोप्पयं तरति।
तैराक (तैरने वाले पुरुष) चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कोई तैराक समुद्र को तैरने का संकल्प करता है और समुद्र को तैर भी जाता है।
२. कोई तैराक समुद्र को तैरने का संकल्प करता है, किन्तु गोष्पद (गौ के पैर रखने से बने गड़हे जैसे अल्पजलवाले स्थान) को तैरता है।
३. कोई तैराक गोष्पद को तैरने का संकल्प करता है और समुद्र को तैर जाता है। ४. कोई तैराक गोष्पद को तैरने का संकल्प करता है गोष्पद को ही तैरता है (५८८)।
विवेचन— यद्यपि इसका दार्टान्तिक-प्रतिपादक सूत्र उपलब्ध नहीं है, किन्तु परम्परा के अनुसार टीकाकार ने इस प्रकार से भाव-तैराक का निरूपण किया है
१. कोई पुरुष भव-समुद्र पार करने के लिए सर्वविरति को धारण करने का संकल्प करता है और उसे धारण करके भव-समुद्र को पार भी कर लेता है।
२. कोई पुरुष सर्वविरति को धारण करने का संकल्प करके देशविरति को ही धारण करता है। ३. कोई पुरुष देशविरति को धारण करने का संकल्प करके सर्वविरति को धारण करता है। ४. कोई पुरुष देशविरति को धारण करने का संकल्प करके देशविरति को ही धारण करता है (५८८)।
५८९- चत्तारि तरगा पण्णत्ता, तं जहा समुदं तरेत्ता णाममेगे समुद्दे विसीयति, समुहं तरेत्ता णाममेगे गोप्पए विसीयति, गोप्पयं तरेत्ता णाममेगे समुद्दे विसीयति, गोप्पयं तरेत्ता णाममेगे गोप्पए