Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
४०४
इसी प्रकार प्रव्रज्या भी चार प्रकार की कही गई है, जैसे
१. वापिता प्रव्रज्या— सामायिक चारित्र में आरोपित करना (छोटी दीक्षा) ।
२. परिवापिता प्रव्रज्या— महाव्रतों में आरोपित करना ( बड़ी दीक्षा) ।
३. निदाता प्रव्रज्या — एक बार आलोचना वाली दीक्षा ।
४. परिनिदाता प्रव्रज्या— बार - बार आलोचना वाली दीक्षा (५७६)।
५७७– चउव्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा—धण्णपुंजितसमाणा, धण्णविरल्लितसमाणा, धण्णविक्खित्तसमाणा, धण्णसंकट्टितसमाणा ।
पुनः प्रव्रज्या चार प्रकार की कही गई है, जैसे
१. पुंजितधान्यसमाना— साफ किये गये खलिहान में रखे धान्य- पुंज के समान निर्दोष प्रव्रज्या ।
२. विसरितधान्यसमाना— साफ किये गये, किन्तु खलिहान में बिखरे हुए धान्य के समान अल्प-अतिचार वाली प्रव्रज्या ।
३. विक्षिप्तधान्यसमाना— खलिहान में बैलों आदि के द्वारा कुचले गए धान्य के समान बहु अतिचार वाली
प्रव्रज्या ।
४. संकर्षितधान्यसमाना—खेत से काट कर खलिहान में लाए गए धान्य-पूलों के समान बहुतर अतिचार वाली प्रव्रज्या (५७७)।
संज्ञा - सूत्र
५७८ - चत्तारि सण्णाओ पण्णत्ताओ, तं जहा— आहारसण्णा, भयसण्णा, परिग्गहसण्णा ।
स्थानाङ्गसूत्रम्
संज्ञाएं चार प्रकार की कही गई हैं, जैसे—
१. आहारसंज्ञा, २. भयसंज्ञा, ३. मैथुनसंज्ञा, ४. परिग्रहसंज्ञा (५७८ ) ।
चार कारणों से आहारसंज्ञा उत्पन्न होती है, जैसे—
१. पेट के खाली होने से, २. क्षुधा वेदनीय कर्म के उदय से,
३. आहार सम्बन्धी बातें सुनने से उत्पन्न होने वाली आहार की बुद्धि से,
४. आहार सम्बन्धी उपयोग - चिन्तन से ( ५७९ ) ।
५७९— चउहिं ठाणेहिं आहारसण्णा समुप्पज्जति, तं जहा — ओमकोट्ठताए, छुहावेयणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं, मतीए, तदट्ठोवओगेणं ।
मेहुणा,
भयसंज्ञा चार कारणों से उत्पन्न होती है, जैसे—
१. सत्त्व (शक्ति) की हीनता से, २. भयवेदनीय कर्म के उदय से,
५८०– चउहिं ठाणेहिं भयसण्णा समुप्पज्जति, तं जहा— हीणसत्तताए, भयवेयणिज्जस्स कम्मरस उदणं, मतीए तदट्ठोवओगेणं ।