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चतुर्थ स्थान - चतुर्थ उद्देश
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३. निपतिता भी, परिव्रजिता भी— कोई समर्थ भिक्षुक भिक्षा के लिए निकलता भी है और घूमता भी है। ४. न निपतिता, न परिव्रजिता — कोई नवदीक्षित अल्पवयस्क भिक्षुक भिक्षा के लिए न निकलता है और न घूमता ही है (५५३) ।
कृश-अकृश-सूत्र
५५४— चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा — णिक्कट्ठे णाममेगे णिक्कट्ठे, णिक्कट्ठे णामगे अणिक्कट्ठे, अणिक्कट्ठे णाममेगे णिक्कट्ठे, अणिक्कट्ठे णाममेगे अणिक्कट्ठे ।
पुरुष चार प्रकार कहे गये हैं, जैसे—
१. निष्कृष्ट और निष्कृष्ट — कोई पुरुष शरीर से कृश होता है और कषाय से भी कृश होता है। २. निष्कृष्ट और अनिष्कृष्ट— कोई पुरुष शरीर से कृश होता है, किन्तु कषाय से कृश नहीं होता । ३. अनिष्कृष्ट और निष्कृष्ट— कोई पुरुष शरीर से कृश नहीं होता, किन्तु कषाय से कृश होता है। ४. अनिष्कृष्ट और अनिष्कृष्ट— कोई पुरुष न शरीर से कृश होता है और न कषाय से ही कृश होता है
(५५४) ।
५५५— चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा — णिक्कट्ठे णाममेगे णिक्कट्टप्पा, णिक्कट्ठे णाममेगे अणिक्कट्टप्पा, अणिक्कट्ठे णाममेगे णिक्कट्टप्पा, अणिक्कट्ठे णाममेगे अणिक्कट्टप्पा |
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे—
१. निष्कृष्ट और निष्कृष्टात्मा— कोई पुरुष शरीर से कृश होता है और कषायों का निर्मथन कर देने से निर्मल आत्मा होता है।
२. निष्कृष्ट और अनिष्कृष्टात्मा— कोई पुरुष शरीर से तो कृश होता है, किन्तु कषायों की प्रबलता से अनिर्मल-आत्मा होता है ।
३. अनिष्कृष्ट और निष्कृष्टात्मा — कोई पुरुष शरीर से अकृश (स्थूल) किन्तु कषायों के अभाव से निर्मलआत्मा होता है।
४. अनिष्कृष्ट और अनिष्कृष्टात्मा –— कोई पुरुष शरीर से अनिष्कृष्ट (अकृश) होता है और आत्मा से भी अनिष्कृष्ट (अकृश या अनिर्मल) होता है (५५५)।
बुध-अबुध-सूत्र
५५६— चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहां बुहे णाममेगे बुहे, बुहे णाममेगे अबुहे, अबुहे णामगे बुहे, अबु णाममेगे अबुहे ।
पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे—
१. बुध और बुध कोई पुरुष ज्ञान से भी बुध (विवेकी) होता है और आचरण से भी बुध (विवेकी) होता
है ।
२. बुध और अबुध— कोई पुरुष ज्ञान से तो बुध होता है, किन्तु आचरण से अबुध. (अविवेकी) होता है।