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चतुर्थ स्थान – चतुर्थ उद्देश
३९५ समान धार वाला कोई पुरुष होता है। वह धीरे-धीरे बहुत धीमी गति से अत्यल्प मात्रा में कुटुम्ब का स्नेह-छेदन करता है, वह पुरुष कदम्बचीरिका-पत्र समान कहा गया है। कट-सूत्र
५४९— चत्तारि कडा पण्णत्ता, तं जहा—सुंबकडे, विदलकडे, चम्मकडे, कंबलकडे।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा सुंबकडसमाणे, जाव (विदलकडसमाणे, चम्मकडसमाणे), कंबलकडसमाणे।
कट (चटाई) चार प्रकार का है, जैसे१. शुम्बकट— खजूर से बनी चटाई या घास से बना आसन। २. विदलकट- बांस की पतली खपच्चियों से बनी चटाई। ३. चर्मकट— चमड़े की पतली धारियों से बनी चटाई या आसन। ४. कम्बलकट— बालों से बना बैठने या बिछाने का वस्त्र। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं. जैसे
१. शुम्बकट समान, २. विदलकट समान, ३. चर्मकट समान, ४. कम्बलकट समान (५४९)। - विवेचन- शुम्बकट (खजूर या घास-निर्मित बैठने का आसन) अत्यल्प मूल्य वाला होता है, अतः उसमें रागभाव कम होता है। उसी प्रकार जिसका पुत्रादि में राग या मोह अत्यल्प होता है, वह पुरुष शुम्बकट के समान कहा जाता है। शुम्बकट की अपेक्षा विदलकट अधिक मूल्यवाला होता है अतः उसमें रागभाव अधिक होता है। इसी प्रकार जिसका रागभाव पुत्रादि में कुछ अधिक हो, वह विदलकट के समान पुरुष कहा गया है। विदलकट से चर्मकट और भी अधिक मूल्यवान् होने से उसमें रागभाव भी और अधिक होता है। इसी प्रकार जिसका रागभाव पुत्रादि में गाढ़तर हो, उसे चर्मकटसमान जानना चाहिए तथा जैसे चर्मकट से कम्बलकट अधिक मूल्यवान् होता है, अतः उसमें रागभाव भी अधिक होता है। इसी प्रकार पुत्रादि में गाढ़तम रागभाव वाले पुरुष को कम्बलकट समान जानना चाहिए। तिर्यक्-सूत्र
५५०-चउव्विहा चउप्पया पण्णत्ता, तं जहाएगखुरा, दुखुरा, गंडीपदा, सणप्फया। चतुष्पद (चार पैर वाले) तिर्यंच जीव चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. एक खुर वाले– घोड़े, गधे आदि। २. दो खुर वाले— गाय, भैंस आदि। ३. गण्डीपद- कठोर चर्ममय गोल पैर वाले हाथी, ऊँट आदि। ४. स-नख-पद- लम्बे तीक्ष्ण नाखून वाले शेर, चीता, कुत्ता, बिल्ली आदि।
५५१- चउव्विहा पक्खी पण्णत्ता, तं जहा—चम्मपक्खी, लोमपक्खी, समुग्गपक्खी, विततपक्खी।