________________
३१५
चतुर्थ स्थान – तृतीय उद्देश
१. अर्हन्त भगवन्त क्षान्तिसूर होते हैं। २. अनगार साधु तपःशूर होते हैं।
३. वैश्रमण देव दानशूर होते हैं। ४. वासुदेव युद्धशूर होते हैं (३६७)। उच्च-नीच-सूत्र
३६८- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा उच्चे णाममेगे उच्चच्छंदे, उच्चे णाममेगे णीयच्छंदे, णीए णाममेगे उच्चच्छंदे, णीए णाममेगे णीयच्छंदे।
पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. उच्च और उच्चच्छन्द- कोई पुरुष कुल, वैभव आदि से उच्च होता है और उच्च विचार, उदारता आदि से भी उच्च होता है।
२. उच्च, किन्तु नीचच्छन्द- कोई पुरुष कुल, वैभव आदि से उच्च होता है, किन्तु नीच विचार, कृपणता आदि से नीच होता है।
३. नीच, किन्तु उच्चच्छन्द— कोई पुरुष जाति-कुलादि से नीच होता है, किन्तु उच्च विचार, उदारता आदि से उच्च होता है।
४. नीच और नीचच्छन्द- कोई पुरुष जाति-कुलादि से भी नीच होता है और विचार, कृपणता आदि से भी नीच होता है (३६८)। लेश्या-सूत्र
३६९- असुरकुमाराणं चत्तारि लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा, तेउलेसा।
असुरकुमारों में चार लेश्याएं कही गई हैं, जैसे१. कृष्णलेश्या, २. नीललेश्या, ३. कापोतलेश्या, ४. तेजोलेश्या (३६९)।
३७०- एवं जाव थणियकुमाराणं। एवं-पुढविकाइयाणं आउ-वणस्सइकाइयाणं वाणमंतराणं-सव्वेसिं जहा असुरकुमाराणं।
इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों के, इसी प्रकार पृथिवीकायिक, अप्कायिक, वनस्पतिकायिक जीवों के और वानव्यन्तर देवों के, इन सब के असुरकुमारों के समान चार-चार लेश्याएं होती हैं (३७०)। युक्त-अयुक्त-सूत्र
३७१-- चत्तारि जाणा पण्णत्ता, तं जहा–जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते।।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते।
यान चार प्रकार के होते हैं, जैसे