Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
करता है, जैसे— हरिकेशबल अनगार।
४. अस्तमितास्तमित- कोई पुरुष प्रारम्भ में भी सुकुलादि से भ्रष्ट और जीवन के अन्त में भी दुर्गति का पात्र होता है, जैसे कालशौकरिक (३६३)। युग्म-सूत्र
३६४- चत्तारि जुम्मा पण्णत्ता, तं जहा कडजुम्मे, तेयोए, दावरजुम्मे, कलिओए। युग्म (राशि-विशेष) चार प्रकार का कहा गया है, जैसे
१. कृतयुग्म- जिस राशि में चार का भाग देने पर शेष कुछ न रहे, वह कृतयुग्म राशि है। जैसे— १६ का अंक।
२. योज— जिस राशि में चार का भाग देने पर तीन शेष रहें, वह त्र्योज राशि है। जैसे— १५ का अंक।
३. द्वापरयुग्म- जिस राशि में चार का भागदेने पर दो शेष रहें, वह द्वापरयुग्म राशि है। जैसे— १४ का अंक।
४. कल्योज— जिस राशि में चार का भाग देने पर एक शेष रहे, वह कल्योज राशि है। जैसे–१३ का अंक। ३६५–णेरइयाणं चत्तारि जुम्म पण्णत्ता, तं जहा—कडजुम्मे, तेओए, दावरजुम्मे, कलिओए। नारक जीव चारों प्रकार के युग्मवाले कहे गये हैं, जैसे१. कृतयुग्म, २. त्र्योज, ३. द्वापरयुग्म, ४. कल्योज (३६५)।
३६६— एवं असुरकुमाराणं जाव थणियकुमाराणं। एवं—पुढविकाइयाणं आउ-तेउ-वाउवणस्सतिकाइयाणं बेंदियाणं तेंदियाणं चउरिदियाणं पंचिंदियतिरिक्ख-जोणियाणं मणुस्साणं वाणमंतरजोइसियाणं वेमाणियाणं सव्वेसिं जहा णेरइयाणं।
इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक, इसी प्रकार पृथिवी, अप, तेज, वायु, वनस्पतिकायिकों के, द्वीन्द्रियों के, त्रीन्द्रियों के, चतुरिन्द्रियों के, पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों के, मनुष्यों के वानव्यन्तरों के, ज्योतिष्कों के और वैमानिकों के सभी के नारकियों के समान चारों युग्म कहे गये हैं (३६६)।
विवेचन– सभी दण्डकों में चारों युग्मराशियों के जीव पाये जाने का कारण यह है कि जन्म और मरण की अपेक्षा इनकी राशि में हीनाधिकता होती रहती है, इसलिए किसी समय विवक्षितराशि कृतयुग्म पाई जाती है, तो किसी समय त्र्योज आदि राशि पाई जाती है। शूर-सूत्र
३६७- चत्तारि सूरा पण्णत्ता, तं जहा तवसूरे, खंतिसूरे, दाणसूरे, जुद्धसूरे। खंतिसूरा अरहंता, तवसूरा अणगारा, दाणसूरे वेसमणे, जुद्धसूरे वासुदेवे। शूर चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. क्षान्ति या शान्ति शूर, २. तप:शूर, ३. दानशूर, ४. युद्धशूर ।