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स्थानाङ्गसूत्रम्
१. रूपसम्पन्न, न श्रुतसम्पन्न — कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु श्रुतसम्पन्न नहीं होता । २. श्रुतसम्पन्न, न रूपसम्पन्न — कोई पुरुष श्रुतसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता । ३. रूपसम्पन्न भी, श्रुतसम्पन्न भी कोई पुरुष रूपसम्पन्न भी होता है और श्रुतसम्पन्न भी होता है।
४. न रूपसम्पन्न, न श्रुतसम्पन्न — कोई पुरुष न रूपसम्पन्न होता है और न श्रुतसम्पन्न ही होता है (४०५ ) । ४०६ - [ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा रूवसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्णे, सीलसंपणे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि सीलसंपण्णेवि, एगे णो रूवसंपण्णे णो सीलसंपणे ] |
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे—
१. रूपसम्पन्न, न शीलसम्पन्न — कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु शीलसम्पन्न नहीं होता ।
२. शीलसम्पन्न, न रूपसम्पन्न — कोई पुरुष शीलसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता । ३. रूपसम्पन्न भी, शीलसम्पन्न भी— कोई पुरुष रूपसम्पन्न भी होता है और शीलसम्पन्न भी होता है ।
४. न रूपसम्पन्न, न शीलसम्पन्न — कोई पुरुष न रूपसम्पन्न होता है और न शीलसम्पन्न ही होता है (४०६) । ४०७ [ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा रूवसंपण्णे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे, चरित्तसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे णो रूवसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे ] |
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे—
१. रूपसम्पन्न, न चरित्रसम्पन्न — कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु चरित्रसम्पन्न नहीं होता ।
२. चरित्रसम्पन्न, न रूपसम्पन्न — कोई पुरुष चरित्रसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता ।
३. रूपसम्पन्न भी, चरित्रसम्पन्न भी— कोई पुरुष रूपसम्पन्न भी होता है और चरित्र सम्पन्न भी होता है।
४. न रूपसम्पन्न, न चरित्रसम्पन्न — कोई पुरुष न रूपसम्पन्न होता है और न चरित्रसम्पन्न ही होता है (४०७) ।
श्रुत-सूत्र
४०८ – चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा— सुयसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपणे, सीलसंपणे णाममेगे णो सुयसंपण्णे, एगे सुयसंपण्णेवि सीलसंपण्णेवि, एगे जो सुयसंपणे णो सीलसंपणे ।
पुन: पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे—
१. श्रुतसम्पन्न, न शीलसम्पन्न — कोई पुरुष श्रुतसम्पन्न होता है, किन्तु शीलसम्पन्न नहीं होता ।
२. शीलसम्पन्न, न श्रुतसम्पन्न — कोई पुरुष शीलसम्पन्न होता है, किन्तु श्रुतसम्पन्न नहीं होता । ३. श्रुतसम्पन्न भी, शीलसम्पन्न भी कोई पुरुष श्रुतसम्पन्न भी होता है और शीलसम्पन्न भी होता है। ४. न श्रुतसम्पन्न, न शीलसम्पन्न — कोई पुरुष न श्रुतसम्पन्न होता है: न शीलसम्पन्न ही होता है (४०८ ) । ४०९ – एवं सुएण य चरित्तेण य [ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा —— सुसंप