Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
३६४
स्थानाङ्गसूत्रम्
४. न बलसम्पन्न, न जयसम्पन्न- कोई घोड़ा न बलसम्पन्न ही होता है और न जयसम्पन्न ही होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. बलसम्पन्न, न जयसम्पन्न- कोई पुरुष बलसम्पन्न होता है, किन्तु जयसम्पन्न नहीं होता। २. जयसम्पन्न, न बलसम्पन्न- कोई पुरुष जयसम्पन्न तो होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। ३. बलसम्पन्न भी, जयसम्पन्न भी— कोई पुरुष बलसम्पन्न भी होता है और जयसम्पन्न भी होता है।
४. न बलसम्पन्न, न जयसम्पन्न— कोई पुरुष न बलसम्पन्न होता है और न जयसम्पन्न ही होता है (४७८)। रूप-सूत्र
४७९-चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा रूवसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपण्णे ४। [जयसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो रूवसंपण्णे णो जयसंपण्णे]।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा रूवसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपण्णे, जयसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो रूवसंपण्णे णो जयसंपण्णे।
घोड़े चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. रूपसम्पन्न, न जयसम्पन्न — कोई घोड़ा रूपसम्पन्न होता है, किन्तु जयसम्पन्न नहीं होता। २. जयसम्पन्न, न रूपसम्पन्न – कोई घोड़ा जयसम्पन्न तो होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। ३. रूपसम्पन्न भी, जयसम्पन्न भी— कोई घोड़ा रूपसम्पन्न भी होता है और जयसम्पन्न भी होता है। . ४. न रूपसम्पन्न, न जयसम्पन्न— कोई घोड़ा न रूपसम्पन्न ही होता है और न जयसम्पन्न ही होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. रूपसम्पन्न, न जयसम्पन्न— कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु जयसम्पन्न नहीं होता। २. जयसम्पन्न, न रूपसम्पन्न— कोई पुरुष जयसम्पन्न तो होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। ३. रूपसम्पन्न भी, जयसम्पन्न भी— कोई पुरुष रूपसम्पन्न भी होता है और जयसम्पन्न भी होता है।
४. न रूपसम्पन्न, न जयसम्पन्न— कोई पुरुष न रूपसम्पन्न होता है और न जयसम्पन्न ही होता है (४७९)। सिंह-शृगाल-सूत्र
[४८०- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—सीहत्ताए णाममेगे णिक्खंते सीहत्ताए विहरइ, सीहत्ताए णाममेगे णिक्खंते सीयालत्ताए विहरइ, सीयालत्ताए णाममेगे णिक्खंते सीहत्ताए विहरइ, सीयालत्ताए णाममेगे णिक्खंते सीयालत्ताए विहरइ।]
[प्रव्रज्यापालक पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. कोई पुरुष सिंहवृत्ति से निष्क्रान्त (प्रव्रजित) होता है और सिंहवृत्ति से ही विचरता है, अर्थात् संयम का दृढ़ता से पालन करता है।
२. कोई पुरुष सिंहवृत्ति से निष्क्रान्त होता है, किन्तु शृगालवृत्ति से विचरता है, अर्थात् दीनवृत्ति से संयम का