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स्थानाङ्गसूत्रम्
२. तदन्यवस्तुक-उपन्यासोपनय — उपन्यास की गई वस्तु से भिन्न भी वस्तु में प्रतिवादी की बात को पकड़ कर उसे हराना ।
३. प्रतिनिभ - उपन्यासोपनय— वादी द्वारा प्रयुक्त हेतु के सदृश दूसरा हेतु प्रयोग करके उसके हेतु को असिद्ध करना ।
४. हेतु - उपन्यासोपनय——– हेतु बता कर अन्य के प्रश्न का समाधान कर देना (५०३) ।
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विवेचन — संस्कृत टीका 'ज्ञात' पद के चार अर्थ किये हैं—
१. दृष्टान्त, २ . आख्यानक, ३. उपमान मात्र और ४. उपपत्ति मात्र ।
१. दृष्टान्त—– न्यायशास्त्र के अनुसार साधन का सद्भाव होने पर साध्य का नियम से सद्भाव और साध्य के अभाव में साधन का नियम से अभाव जहां दिखाया जावे, उसे दृष्टान्त कहते हैं। जैसे धूम देखकर अग्नि का सद्भाव बताने के लिए रसोईघर को बताना, अर्थात् जहां धूम होता है वहां अग्नि होती है, जैसे रसोईघर । यहां रसोईघर दृष्टान्त है ।
आख्यानक का अर्थ कथानक है। यह दो प्रकार का होता है――― चरित और कल्पित । निदान का दुष्फल बताने के लिए ब्रह्मदत्त का दृष्टान्त देना चरित - आख्यानक है। कल्पना के द्वारा किसी तथ्य को प्रकट करना कल्पित आख्यानक है। जैसे— पीपल के पके पत्ते को गिरता देखकर नव किसलय हंसा, उसे हंसता देखकर पका पत्ता बोला – एक दिन तुम्हारा भी यही हाल होगा। यह दृष्टान्त यद्यपि कल्पित है, तो भी शरीरादि की अनित्यता का द्योतक है।
सूत्राङ्क ४९९ ज्ञात के चार भेद बताये गये हैं । उनका विवरण इस प्रकार है
में
१. आहरण-ज्ञात — अप्रतीत अर्थ को प्रतीत कराने वाला दृष्टान्त आहरण-ज्ञात कहलाता है। जैसे—पाप दुःख देने वाला होता है, ब्रह्मदत्त के समान ।
२. आहरणतद्देश - ज्ञात — दृष्टान्तार्थ के एक देश से दान्तिक अर्थ का कहना, जैसे—' इसका मुख चन्द्र जैसा है' यहाँ चन्द्र की सौम्यता और कान्ति मात्र ही विवक्षित है, चन्द्र का कलंक आदि नहीं। अतः यह एकदेशीय दृष्टान्त
है।
३. आहरणतद्दोष-ज्ञात — उदाहरण के साध्यविकल आदि दोषों से युक्त दृष्टान्त को आरहतद्दोष ज्ञात ह हैं। जैसे— शब्द नित्य है, क्योंकि वह अमूर्त है, जैसे घट | यह दृष्टान्त साध्य - साधन - विकलता दोष से युक्त है, क्योंकि घट मनुष्य के द्वारा बनाया जाता है, इसलिए वह नित्य नहीं है और रूपादि से युक्त है अत: अमूर्त्त भी नहीं
है।
४. उपन्यासोपनय ज्ञात—— वादी अपने अभीष्ट मत की सिद्धि के लिए दृष्टान्त का उपन्यास करता है— आत्मा अकर्ता है, क्योंकि वह अमूर्त है । जैसे—आकाश । प्रतिवादी उसका खण्डन करने के लिए कहता है यदि आत्मा आकाश के समान अकर्ता वह आकाश के समान अभोक्ता भी होना चाहिए।
ज्ञात
प्रथम भेद आहरण के सूत्राङ्क ५०० में चार भेद बताये गये हैं। उनका विवरण इस प्रकार है१. अपाय - आहरण — हेयधर्म के ज्ञान कराने वाले दृष्टान्त को अपाय - आहरण कहते हैं। टीकाकार ने इसके भी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा चार भेद करके कथानकों द्वारा उनका विस्तृत वर्णन किया है।