Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
अण्णाणियावादी, वेणइयावादी।
वादियों के चार समवसरण (सम्मेलन या समुदाय) कहे गये हैं, जैसे१. क्रियावादि-समवसरण— पुण्य-पाप रूप क्रियाओं को मानने वाले आस्तिकों का समवसरण। २. अक्रियावादि-समवसरण- पुण्य-पापरूप रूप क्रियाओं को नहीं मानने वाले नास्तिकों का समवसरण। ३. अज्ञानवादि-समवसरण- अज्ञान को ही शान्ति या सुख का कारण मानने वालों का समवसरण। ४. विनयवादि-समवसरण- सभी जीवों की विनय करने से मुक्ति माननेवालों का समवसरण (५३०)।
५३१- रइयाणं चत्तारि वादिसमोसरणा पण्णत्ता, तं जहा—किरियावादी, जाव (अकिरियावादी, अण्णाणियावादी) वेणइयावादी।
नारकों के चार समवसरण कहे गये हैं, जैसे१. क्रियावादि-समवसरण, २. अक्रियावादी-समवसरण, ३. अज्ञानवादि-समवसरण, ४. विनयवादि-समवसरण (५३१)। ५३२- एवमसुरकुमाराणवि जाव थणियकुमाराणं। एवं विगलिंदियवजं जाव वेमाणियाणं।
इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक चार-चार वादिसमवसरण कहे गये हैं। इसी प्रकार विकलेन्द्रियों को छोड़कर वैमानिक-पर्यन्त सभी दण्डकों के चार-चार समवसरण जानना चाहिए (५३२)।
विवेचन— संस्कृत टीकाकार ने 'समवसरण' की निरुक्ति इस प्रकार से की है— 'वादिनः तीर्थकाः समवसरन्ति-अवतरन्ति येषु इति समवसरणानि' अर्थात् जिस स्थान पर सर्व ओर से आकर वादी जन या विभिन्न मत वाले मिलें-एकत्र हों, उस स्थान को समवसरण कहते हैं। भगवान् महावीर के समय में सूत्रोक्त चारों प्रकार के वादियों के समवसरण थे और उनके भी अनेक उत्तर भेद थे, जिनकी संख्या एक प्राचीन गाथा को उद्धृत करके इस प्रकार बतलाई गई है
१. क्रियावादियों के १८० उत्तरभेद, २. अक्रियावादियों के ८४ उत्तरभेद, ३. अज्ञानवादियों के ६७ उत्तरभेद, ४. विनयवादियों के ३२ उत्तरभेद।
इस प्रकार (१८०+८४+६७+३२-३६३) तीन सौ तिरेसठ वादियों के भगवान् महावीर के समय में होने का उल्लेख श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों सम्प्रदाय के शास्त्रों में पाया जाता है।
यहां यह बात खास तौर से विचारणीय है कि सूत्र ५३१ में नारकों के और सूत्र ५३२ में विकलेन्द्रियों को छोड़कर शेष दण्डक वाले जीवों के उक्त चारों समवसरणों का उल्लेख किया गया है। इसका कारण यह है कि विकलेन्द्रिय जीव असंज्ञी होते हैं, अत: उनमें ये चारों भेद नहीं घटित हो सकते, किन्तु नारक आदि संज्ञी हैं, अतः उनमें यह चारों विकल्प घटित हो सकते हैं। मेघ-सूत्र
___५३३- चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा—जित्ता णाममेगे णो वासित्ता, वासित्ता णाममेगे णो गजित्ता, एगे गजित्तावि वासित्तावि, एगे णो गजित्ता णो वासित्ता।