Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ स्थान– चतुर्थ उद्देश
३८३ पविभावइत्ता।
पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. आख्यायक, न प्रभावक- कोई पुरुष प्रवचन का प्रज्ञापक (पढ़ाने वाला) तो होता है, किन्तु प्रभावक (शासन की प्रभावना करने वाला) नहीं होता है।
२. प्रभावक, न आख्यायक- कोई पुरुष प्रभावक तो होता है, किन्तु आख्यायक नहीं। ३. आख्यायक भी, प्रभावक भी— कोई पुरुष आख्यायक भी होता है और प्रभावक भी होता है। ४. न आख्यायक, न प्रभावक- कोई पुरुष न आख्यायक ही होता है और न प्रभावक ही होता है (५२७)।
५२८- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—आघवइत्ता णाममेगे णो उंछजीविसंपण्णे, उंछजीविसंपण्णे णाममेगे णो आघवइत्ता, एगे आघवइत्तावि उंछजीविसंपण्णेवि, एगे णो आघवइत्ता णो उंछजीविसंपण्णे।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. आख्यायक, न उञ्छजीविकासम्पन्न – कोई पुरुष आख्यायक तो होता है, किन्तु उञ्छजीविकासम्पन्न नहीं होता है।
२. उञ्छजीविकासम्पन्न, न आख्यायक- कोई पुरुष उञ्छजीविकासम्पन्न तो होता है, किन्तु आख्यायक नहीं होता। ___३. आख्यायक भी, उञ्छजीविकासम्पन्न भी— कोई पुरुष आख्यायक भी होता है और उञ्छजीविकासम्पन्न भी होता है।
४. न आख्यायक, न उञ्छजीविकासम्पन्न— कोई पुरुष न आख्यायक ही होता है और न उञ्छजीविकासम्पन्न ही होता है (५२८)।
विवेचन— अनेक घरों से थोड़ी-थोड़ी भिक्षा को ग्रहण करने को उञ्छ' जीविका कहते हैं। माधुकरीवृत्ति या गोचरी प्रभृति भी इसी के दूसरे नाम हैं। जो व्यक्ति उञ्छजीविका या माधुकरीवृत्ति से अपने भक्त-पान की गवेषणा करता है, उसे उञ्छजीविकासम्पन्न कहा जाता है। वृक्ष-विक्रिया-सूत्र
५२९ – चउव्विहा रुक्खविगुव्वणा पण्णत्ता, तं जहा—पवालत्ताए, पत्तत्ताए, पुष्फत्ताए, फलत्ताए।
वृक्षों की विकरणरूप विक्रिया चार प्रकार की कही गई है, जैसे
१. प्रवाल (कोंपल) के रूप से, २. पत्र के रूप से, ३. पुष्प के रूप से, ४. फल के रूप से (५२९)। वादि-समवसरण-सूत्र
५३०- चत्तारि वादिसमोसरणा पण्णत्ता, तं जहा—किरियावादी, अकिरियावादी, १. 'उञ्छः कणश आदाने' इति यादवः ।