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चतुर्थ स्थान- चतुर्थ उद्देश
३८५ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—गजित्ता णाममेगे णो वासित्ता, वासित्ता णाममेगे णो गजित्ता, एगे गजित्तावि वासित्तावि, एगे णो गजित्ता णो वासित्ता।
मेघ चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. गर्जक, न वर्षक– कोई मेघ गरजता है, किन्तु बरसता नहीं है। २. वर्षक, न गर्जक- कोई मेघ बरसता है, किन्तु गरजता नहीं है। ३. गर्जक भी, वर्षक भी- कोई मेघ गरजता भी है और बरसता भी है। ४. न गर्जक, न वर्षक– कोई मेघ न गरजता है और न बरसता ही है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. गर्जक, नं वर्षक- कोई पुरुष गरजता है, किन्तु बरसता नहीं। अर्थात् बड़े-बड़े कामों को करने की उद्घोषणा करता है, किन्तु उन कामों को करता नहीं है।
२. वर्षक, न गर्जक- कोई पुरुष कार्यों का सम्पादन करता है, किन्तु उद्घोषणा नहीं करता, गरजता नहीं है। ३. गर्जक भी वर्षक भी कोई पुरुष कार्यों को करने की गर्जना भी करता है और उन्हें सम्पादन भी करता
है।
४. न गर्जक, न वर्षक.- कोई पुरुष कार्यों को करने की न गर्जना ही करता है और न कार्यों को करता ही है (५३३)।
५३४ – चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा—गजित्ता णाममेगे णो विजुयाइत्ता, विजुयाइत्ता णाममेगे णो गजित्ता, एगे गजित्तावि विजुयाइत्तावि, एगे णो गजित्ता णो विजुयाइत्ता।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा गजित्ता णाममेगे णो विज्जुयाइत्ता, विजुयाइत्ता णाममेगे णो गजित्ता, एगे गजित्तावि विजुयाइत्तावि, एगे णो गजित्ता णो विजुयाइत्ता।
पुनः मेघ चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. गर्जकं, न विद्योतक- कोई मेघ गरजता है, किन्तु विद्युत्कर्ता नहीं, चमकता नहीं है। २. विद्योतक, न गर्जक- कोई मेघ चमकता है, किन्तु गरजता नहीं है। ३. गर्जक भी, विद्योतक भी— कोई मेघ गरजता भी है और चमकता भी है। ४. न गर्जक, न विद्योतक- कोई मेघ न गरजता है और न चमकता ही है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. गर्जक, न विद्योतक- कोई पुरुष दानादि करने की गर्जना (घोषणा) तो करता है, किन्तु चमकता नहीं अर्थात् उसे देता नहीं है।
२. विद्योतक, न गर्जक- कोई पुरुष दानादि देकर चमकता तो है, किन्तु उसकी गर्जना या घोषणा नहीं करता है।
३. गर्जक भी, विद्योतक भी- कोई पुरुष दानादि की गर्जना भी करता है और देकर के चमकता भी है। ४. न गर्जक, न विद्योतक– कोई पुरुष न दानादि की गर्जना ही करता है और न देकर के चमकता