Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ स्थान- चतुर्थ उद्देश
३८१ ४. न अन्तःशल्य, न बहि:शल्य- कोई पुरुष न भीतरी शल्य वाला होता है और न बाहरी शल्य वाला ही होता है (५२१)।
५२२– चत्तारि वणा पण्णत्ता, तं जहा—अंतोदडे णाममेगे णो बाहिंदुद्वे, बाहिंदटे णाममेगे णो अंतोदुढे, एगे अंतोदुद्वेवि बाहिंदुडेवि, एगे णो अंतोदुढे णो बाहिंदुटे।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अंतोदुढे णाममेगे णो बाहिंदुद्वे, बाहिंदुढे णाममेगे णो अंतोदुढे, एगे अंतोदुडेवि बाहिंदुडेवि, एगे णो अंतोदुढे णो बाहिंदुटे।
पुनः व्रण चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. अन्तर्दुष्ट, न बहिर्दुष्ट- कोई व्रण भीतर से (विकृत) होता है, बाहर से दुष्ट नहीं होता। २. बहिर्दुष्ट, न अन्तर्दुष्ट- कोई व्रण बाहर से दुष्ट होता है, भीतर से दुष्ट नहीं होता। ३. अन्तर्दुष्ट भी, बहिर्दुष्ट भी- कोई व्रण भीतर से भी दुष्ट होता है और बाहर से भी दुष्ट होता है। ४. न अन्तर्दुष्ट, न बहिर्दुष्ट- कोई व्रण न भीतर से दुष्ट होता है और न बाहर से ही दुष्ट होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. अन्तर्दुष्ट, न बहिर्दुष्ट- कोई पुरुष अन्दर से दुष्ट होता है, बाहर से दुष्ट नहीं होता। • २. बहिर्दुष्ट, न अन्तर्दुष्ट- कोई पुरुष बाहर से दुष्ट होता है, भीतर से दुष्ट नहीं होता।
३. अन्तर्दुष्ट भी, बहिर्दुष्ट भी कोई पुरुष अन्दर से भी दुष्ट होता है और बाहर से भी दुष्ट होता है।
४. न अन्तर्दुष्ट, न बहिर्दुष्ट- कोई पुरुष न अन्दर से दुष्ट होता है और न बाहर से दुष्ट होता है (५२२)। श्रेयस्-पापीयस्-सूत्र
५२३– चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा सेयंसे णाममेगे सेयंसे, सेयंसे णाममेगे पावंसे, पावंसे णाममेगे सेयंसे, पावंसे णाममेगे पावंसे।
पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. श्रेयान्, और श्रेयान्– कोई पुरुष सद्-ज्ञान की अपेक्षा श्रेयान् (अति प्रशंसनीय) होता है और सदाचार की अपेक्षा भी श्रेयान् होता है।
२. श्रेयान् और पापीयान्— कोई पुरुष सद्-ज्ञान की अपेक्षा तो श्रेयान् होता है, किन्तु कदाचार की अपेक्षा पापीयान् (अत्यन्त पापी) होता है।
३. पापीयान् और श्रेयान्— कोई पुरुष कु-ज्ञान की अपेक्षा पापीयान् होता है, किन्तु सदाचार की अपेक्षा श्रेयान् होता है।
४. पापीयान् और पापीयान्— कोई पुरुष कुज्ञान की अपेक्षा भी पापीयान् होता है और कदाचार की अपेक्षा भी पापीयान् होता है (५२३)।
५२४- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा सेयंसे णाममेगे सेयंसेत्तिसालिसए, सेयंसे णाममेगे पावंसेत्तिसालिसए, पावंसे णाममेगे सेयंसेत्तिसालिसए, पावंसे णाममेगे पावंसेत्तिसालिसए।