Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
याचना करूंगा, अन्य की नहीं। यह तीसरी वस्त्रप्रतिमा है।
४. मेरे लिए उद्दिष्ट और घोषित वस्त्र यदि शय्यातर के द्वारा फैंक देने योग्य हो तो उसकी याचना करूंगा, अन्य की नहीं। यह चौथी वस्त्रप्रतिमा है।
(३) पात्र-प्रतिमा के चार प्रकार१. मेरे लिए उद्दिष्ट काष्ठ-पात्र आदि की मैं याचना करूंगा, अन्य की नहीं, यह पहली पात्र-प्रतिमा है। २. मेरे लिए उद्दिष्ट पात्र यदि मैं देखूगा, तो उसकी मैं याचना करूंगा, अन्य की नहीं। यह दूसरी पात्र-प्रतिमा
है।
३. मेरे लिए उद्दिष्ट पात्र यदि दाता का निजी है और उसके द्वारा उपभुक्त है, तो मैं याचना करूंगा, अन्यथा नहीं। यह तीसरी पात्र-प्रतिमा है।
४. मेरे लिए उद्दिष्ट पात्र यदि दाता का निजी है, उपभुक्त है और उसके द्वारा छोड़ने-त्याग देने के योग्य है, तो मैं याचना करूंगा, अन्य नहीं। यह चौथी पात्र-प्रतिमा है।
(४) स्थान-प्रतिमा के चार प्रकार
१. कायोत्सर्ग, ध्यान और अध्ययन के लिए मैं जिस अचित्त स्थान का आश्रय लूंगा, वहाँ पर ही मैं हाथ-पैर पसारूंगा, वहीं पर अल्प पाद-विचरण करूंगा और भित्ति आदि का सहारा लूंगा, अन्यथा नहीं। यह पहली स्थानप्रतिमा है।
२. स्वीकृत स्थान में भी मैं पाद-विचरण नहीं करूंगा, यह दूसरी स्थानप्रतिमा है। ३. स्वीकृत स्थान में भी मैं भित्ति आदि का सहारा नहीं लूंगा, यह तीसरी स्थानप्रतिमा है।
४. स्वीकृत स्थान में भी मैं न हाथ-पैर पसारूंगा, न भित्ति आदि का सहारा लूंगा, न पाद-विचरण करूंगा। किन्तु जैसा कायोत्सर्ग, पद्मासन या अन्य आसन से अवस्थित होऊंगा, नियत काल तक तथैव अवस्थित रहूंगा। यह चौथी स्थानप्रतिमा है। शरीर-सूत्र
४९१– चत्तारि सरीरगा जीवफुडा पण्णत्ता, तं जहा—वेउब्विए, आहारए, तेयए, कम्मए। चार शरीर जीव-स्पृष्ट कहे गये हैं, जैसे१. वैक्रियशरीर, २. आहारकशरीर, ३. तैजसशरीर, ४. कार्मणशरीर (४९१)। ४९२- चत्तारि सरीरगा कम्मुमीसगा पण्णत्ता, तं जहा–ओरालिए, वेउविए, आहारए, तेयए। चार शरीर कार्मणशरीर से संयुक्त कहे गये हैं१. औदारिकशरीर, २. वैक्रियशरीर, ३. आहारकशरीर, ४. तैजसशरीर (४९२)।
विवेचन- वैक्रिय आदि चार शरीरों को जीव-स्पृष्ट कहा गया है, इसका अभिप्राय यह है कि ये चारों शरीर सदा जीव से व्याप्त ही मिलेंगे। जीव से रहित वैक्रिय आदि शरीरों की सत्ता त्रिकाल में भी सम्भव नहीं है अर्थात् जीव द्वारा त्यक्त वैक्रिय आदि शरीर पृथक् रूप से कभी नहीं मिलेंगे। जीव के बहिर्गमन करते ही वैक्रिय आदि शरीरों के पुद्गल-परमाणु तत्काल बिखर जाते हैं किन्तु औदारिकशरीर की स्थिति उक्त चारों शरीरों से भिन्न है।