Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
चार अवाचनीय (वाचना देने के अयोग्य) कहे गये हैं, जैसे१. अविनीत— जो विनय-रहित हो, उद्दण्ड और अभिमानी हो। २. विकृति-प्रतिबद्ध- जो दूध-घृतादि के खाने में आसक्त हो। ३. अव्यवशमित-प्राभृत— जिसका कलह और क्रोध शान्त न हुआ हो। ४. मायावी— मायाचार करने का स्वभाव वाला (४५२)।
विवेचन— उक्त चार प्रकार के व्यक्ति सूत्र और अर्थ की वाचना देने के अयोग्य कहे गये हैं, क्योंकि ऐसे व्यक्तियों को वाचना देनः निष्फल ही नहीं होता प्रत्युत कभी-कभी दुष्फल-कारक भी होता है।
४५३– चत्तारि वायणिज्जा पण्णत्ता, तं जहा विणीते, अविगतिपडिबद्धे, विओसवितपाहुडे, अमाई।
चार वाचनीय (वाचना देने के योग्य) कहे गये हैं, जैसे१. विनीत— जो अहंकार से रहित एवं विनय से संयुक्त हो। २. विकृति-अप्रतिबद्ध— जो दूध-घृतादि विकृतियों में आसक्त न हो। ३. व्यवशमित-प्राभृत— जिसका कलह-भाव शान्त हो गया हो।
४. अमायावी— जो मायाचार से रहित हो (४५३)। आत्म-पर-सूत्र
४५४- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—आतंभरे णाममेगे णो परंभरे, परंभरे णाममेगे णो आतंभरे, एगे आतंभरेवि परंभरेवि, एगे णो आतंभरे णो परंभरे।
पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. आत्मभर, न परंभर- कोई पुरुष अपना ही भरण-पोषण करता है, दूसरों का नहीं। २. परंभर, न आत्मभर— कोई पुरुष दूसरों का भरण-पोषण करता है, अपना नहीं। ३. आत्मभर भी, परंभर भी- कोई पुरुष अपना भरण-पोषण करता है और दूसरों का भी।
४. न आत्मभर, न परंभर- कोई पुरुष न अपना ही भरण-पोषण करता है और न दूसरों का ही (४५४)। दुर्गत-सुगत-सूत्र
४५५- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—दुग्गए णाममेगे दुग्गए, दुग्गए णाममेगे सुग्गए, सुग्गए णाममेगे दुग्गए, सुग्गए णाममेगे सुग्गए।
पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. दुर्गत और दुर्गत— कोई पुरुष धन से भी दुर्गत (दरिद्र) होता है और ज्ञान से भी दुर्गत होता है। २. दुर्गत और सुगत— कोई पुरुष धन से दुर्गत होता है, किन्तु ज्ञान से सुगत (सम्पन्न) होता है। ३. सुगत और दुर्गत— कोई पुरुष धन से सुगत होता है, किन्तु ज्ञान से दुर्गत होता है। ४. सुगत और सुगत— कोई पुरुष धन से भी सुगत होता है और ज्ञान से भी सुगत होता है (४५५) ।