Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
१. परिज्ञातसंज्ञ, न परिज्ञातगृहावास — कोई पुरुष आहारादि संज्ञाओं का परित्यागी तो होता है, किन्तु गृहाव का परित्यागी नहीं होता ।
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२. परिज्ञातगृहावास, न परिज्ञातसंज्ञ कोई पुरुष परिज्ञातगृहावास तो होता है, किन्तु परिज्ञातसंज्ञ नहीं होता। ३. परिज्ञातसंज्ञ भी, परिज्ञातगृहावास भी — कोई पुरुष परिज्ञातसंज्ञ भी होता है और परिज्ञातगृहावास भी होता
है।
४. न परिज्ञातसंज्ञ, न परिज्ञातगृहावास — कोई पुरुष न परिज्ञातसंज्ञ ही होता है और न परिज्ञातगृहावास ही होता है (४६५)।
इहार्थ- परार्थ-सूत्र
४६६ — चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा इहत्थे णाममेगे णो परत्थे, परत्थे णाममेगे णो इहत्थे । [ एगे इहत्थेवि परत्थेवि, एगे णो इहत्थे णो परत्थे ] ४ ।
पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे—
१. इहार्थ, न परार्थ कोई पुरुष इहार्थ (इस लोक सम्बन्धी प्रयोजनवाला) होता है, किन्तु परार्थ (परलोक सम्बन्धी प्रयोजनवाला) नहीं होता ।
२. परार्थ, न इहार्थ — कोई पुरुष परार्थ होता है, किन्तु इहार्थ नहीं होता।
३. इहार्थ भी, परार्थ भी— कोई पुरुष इहार्थ भी होता है और परार्थ भी होता है।
४. न इहार्थ न परार्थ — कोई पुरुष न इहार्थ ही होता है और न परार्थ ही होता है (४६६) ।
विवेचन संस्कृत टीकाकार ने सूत्र - पठित 'इहत्थ' और 'परत्थ' इन प्राकृत पदों के क्रमशः 'इहास्थ' और 'परास्थ' ऐसे भी संस्कृत रूप दिये हैं। तदनुसार 'इहास्थ' का अर्थ इस लोक सम्बन्धी कार्यों में जिसकी आस्था है, वह 'इहास्थ' पुरुष है और जिसकी परलोक सम्बन्धी कार्यों में आस्था है, वह 'परास्थ' पुरुष है। अतः इस अर्थ के अनुसार चारों भंग इस प्रकार होंगे
१. कोई पुरुष इस लोक में आस्था (विश्वास) रखता है, परलोक में आस्था नहीं रखता । २. कोई पुरुष परलोक में आस्था रखता है, इस लोक में आस्था नहीं रखता।
३. कोई पुरुष इस लोक में भी आस्था रखता है और परलोक में भी आस्था रखता है। ४. कोई पुरुष न इस लोक में आस्था रखता है और न परलोक में ही आस्था रखता है ।
हानि-वृद्धि-सूत्र
४६७- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा— एगेणं णाममेगे वढति एगेणं हायति, एगेणं णाममेगे वड्डति दोहिं हायति, दोहिं णाममेगे वड्डति एगेणं हायति, दोहिं णाममेगे वड्ढति दोहिं हायति ।
पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे—
१. एक से बढ़ने वाला, एक से हीन होने वाला— कोई पुरुष एक - शास्त्राभ्यास में बढ़ता है और एकसम्यग्दर्शन से हीन होता है ।