Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ स्थान तृतीय उद्देश
३५७ २. एक से बढ़ने वाला, दो से हीन होने वाला— कोई पुरुष एक शास्त्राभ्यास से बढ़ता है, किन्तु सम्यग्दर्शन और विनय इन दो से हीन होता है।
३. दो से बढ़ने वाला, एक से हीन होने वाला— कोई पुरुष शास्त्राभ्यास और चारित्र इन दो से बढ़ता है और एक सम्यग्दर्शन से हीन होता है।
४. दो से बढ़ने वाला, दो से हीन होने वाला— कोई पुरुष शास्त्राभ्यास और चारित्र इन दो से बढ़ता है और सम्यग्दर्शन एवं विनय इन दो से हीन होता है (४६७)। .
विवेचन- सूत्र-पठित 'एक' और 'दो' इन सामान्य पदों के आश्रय से उक्त व्याख्या के अतिरिक्त और भी अनेक प्रकार से व्याख्या की है; जो कि इस प्रकार है
१. कोई पुरुष एक ज्ञान से बढ़ता है और एक राग से हीन होता है। २. कोई पुरुष एक ज्ञान से बढ़ता है और राग-द्वेष इन दो से हीन होता है। ३. कोई पुरुष ज्ञान और संयम इन दो से बढ़ता है और एक राग से हीन होता है। ४. कोई पुरुष ज्ञान और संयम इन दो से बढ़ता है और राग-द्वेष इन दो से हीन होता है। अथवा१. कोई पुरुष एक क्रोध से बढ़ता है और एक माया से हीन होता है। २. कोई पुरुष एक क्रोध से बढ़ता है और माया एवं लोभ इन दो से हीन होता है। ३. कोई पुरुष क्रोध और मान इन दो से बढ़ता है तथा माया से हीन होता है। ४. कोई पुरुष क्रोध और मान इन दो से बढ़ता है तथा माया और लोभ इन दो से हीन होता है। इसी प्रकार अन्य अनेक विवक्षाओं से भी इस सूत्र की व्याख्या की जा सकती है, जैसे१. कोई पुरुष तृष्णा से बढ़ता है और आयु से हीन होता है। २. कोई पुरुष एक तृष्णा से बढ़ता है, किन्तु वात्सल्य और कारुण्य इन दो से हीन होता है। ३. कोई पुरुष ईर्ष्या और क्रूरता से बढ़ता है और वात्सल्य से हीन होता है। ४. कोई पुरुष वात्सल्य और कारुण्य से बढ़ता है और ईर्ष्या तथा क्रूरता से हीन होता है। अथवा१. कोई पुरुष बुद्धि से बढ़ता है और हृदय से हीन होता है। २. कोई पुरुष बुद्धि से बढ़ता है, किन्तु हृदय और आचार इन दो से हीन होता है। ३. कोई पुरुष बुद्धि और हृदय इन दो से बढ़ता है और अनाचार से हीन होता है। ४. कोई पुरुष बुद्धि और हृदय इन दो से बढ़ता है तथा अनाचार और अश्रद्धा इन दो से हीन होता है। अथवा१. कोई पुरुष सन्देह से बढ़ता है और मैत्री से हीन होता है। २. कोई पुरुष सन्देह से बढ़ता है और मैत्री तथा प्रमोद से हीन होता है। ३. कोई पुरुष मैत्री और प्रमोद से बढ़ता है और सन्देह से हीन होता है। ४. कोई पुरुष मैत्री और प्रमोद से बढ़ता है तथा सन्देह और क्रूरता से हीन होता है।