Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम
अथवा१. कोई पुरुष सरागता से बढ़ता है और वीतरागता से हीन होता है। २. कोई पुरुष सरागता से बढ़ता है तथा वीतरागता और विज्ञान से हीन होता है। ३. कोई पुरुष वीतरागता और विज्ञान से बढ़ता है तथा सरागता से हीन होता है। ४. कोई पुरुष वीतरागता और विज्ञान से बढ़ता है तथा सरागता और छद्मस्थता से हीन होता है।
इसी प्रक्रिया से इस सूत्र के चारों भंगों की और भी अनेक प्रकार से व्याख्या की जा सकती है। आकीर्ण-खलुंक-सूत्र
४६८- चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा—आइण्णे णाममेगे आइण्णे, आइण्णे णाममेगे खलुंके, खलुंके णाममेगे आइण्णे, खलुंके णाममेगे खलुंके।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—आइण्णे णाममेगे आइण्णे चउभंगो [आइण्णे णाममेगे खलुंके, खलुंके णाममेगे आइण्णे, खलुंके णाममेगे खलुंके ]।
प्रकन्थक घोडे चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. आकीर्ण और आकीर्ण— कोई घोड़ा पहले भी आकीर्ण (वेग वाला) होता है और पीछे भी आकीर्ण रहता है।
२. आकीर्ण और खलुंक- कोई घोड़ा पहले आकीर्ण होता है, किन्तु बाद में खलुंक (मन्दगति और अड़ियल) होता जाता है।
३. खलुक और आकीर्ण— कोई घोड़ा पहले खलुक होता है, किन्तु बाद में आकीर्ण हो जाता है। ४. खलुक और खलुंक— कोई घोड़ा पहले भी खलुक होता है और पीछे भी खलुक ही रहता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. आकीर्ण और आकीर्ण— कोई पुरुष पहले भी आकीर्ण—तीव्रबुद्धि होता है और पीछे भी तीव्रबुद्धि ही रहता है।
२. आकीर्ण और खलुंक- कोई पुरुष पहले तो तीव्रबुद्धि होता है, किन्तु पीछे मन्दबुद्धि हो जाता है। ३. खलुक और आकीर्ण- कोई पुरुष पहले तो मन्दबुद्धि होता है, किन्तु पीछे तीव्रबुद्धि हो जाता है।
४. खलुंक और खलुंक– कोई पुरुष पहले भी मन्दबुद्धि होता है और पीछे भी मन्दबुद्धि ही रहता है (४६८)।
४६९- चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा—आइण्णे णाममेगे आइण्णताए, आइण्णे णाममेगे खलुंकताए वहति।[खलुंके णाममेगे आइण्णताए, खलुंके णाममेगे खलुंकताए]।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—आइण्णे णाममेगे आइण्णताए वहति चउभंगो [आइण्णे णाममेगे खलुंकताए वहति, खलुंके णाममेगे आइण्णताए वहति, खलुंके णाममेगे खलुंकताए वहति] ४।