Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ स्थान — तृतीय उद्देश
४. जत्थवि य णं अपच्छिम-मारणंतिय-संलेहणा - झूसणा-झूसिते भत्तपाण -पडियाइक्खिते पाओवगते कालमणवकंखमाणे विहरति, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते ।
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भार को वहन करने वाले पुरुष के लिए चार आश्वास ( श्वास लेने के स्थान या विश्राम) कहे गये हैं, जैसे१. जहाँ वह अपने भार को एक कन्धे से दूसरे कन्धे पर रखता है, वह उसका पहला आश्वास कहा गया है। २. जहाँ वह अपना भार भूमि पर रख कर मल-मूत्र का विसर्जन करता है, वह उसका दूसरा आश्वास कहा
गया है ।
३. जहाँ वह किसी नागकुमारावास या सुपर्णकुमारावास आदि देवस्थान पर रात्रि में वसता है, वह तीसरा आश्वास कहा गया है।
४. जहाँ वह भार वहन से मुक्त होकर यावज्जीवन (स्थायी रूप से) रहता है, वह चौथा आश्वास कहा गया
इसी प्रकार श्रमणोपासक (श्रावक) के चार आश्वास कहे गये हैं, जैसे
१. जिस समय वह शीलव्रत, गुणव्रत, पाप-विरमण, प्रत्याख्यान और पोषधोपवास को स्वीकार करता है, तब वह उसका पहला आश्वास होता है।
२. जिस समय वह सामायिक और देशावकाशिक व्रत का सम्यक् प्रकार से परिपालन करता है, तब वह उसका दूसरा आश्वास है ।
३. जिस समय वह अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णमासी के दिन परिपूर्ण पोषध का सम्यक् प्रकार परिपालन करता है, तब वह उसका तीसरा आश्वास कहा गया है।
४. जिस समय वह जीवन के अन्त में अपश्चिम मारणान्तिक संलेखना की आराधना से युक्त होकर भक्तपान का त्याग कर पादोपगमन संन्यास को स्वीकार कर मरण की आकांक्षा नहीं करता हुआ समय व्यतीत करता है, वह उसका चौथा आश्वास कहा गया है (३६२) ।
उदित-अस्तमित
- सूत्र
३६३ – चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा— उदितोदिते णाममेगे, उदितत्थमिते णाममेगे, अत्थमितोदिते णाममेगे, अत्थमितत्थमिते णाममेगे ।
भरहे राया चाउरंतचक्कवट्ठी णं उदितोदिते, बंभदत्ते णं राया चाउरंतचक्कवट्टी उदितत्थमिते, हरिएसबले णं अणगारे अत्थमितोदिते, काले णं सोयरिये अत्थमितत्थमिते ।
पुरुष चार प्रकार के होते हैं, जैसे
जैसे
१. उदितोदित—– कोई पुरुष प्रारम्भ में उदित (उन्नत) होता है और अन्त तक उन्नत रहता है, चक्रवर्ती भरत राजा ।
२. उदितास्तमित— कोई पुरुष प्रारम्भ से उन्नत होता है, किन्तु अन्त में अस्तमित होता है । अर्थात् सर्वसमृद्धि से भ्रष्ट होकर दुर्गति का पात्र होता है, जैसे— चातुरन्त चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त राजा ।
३. अस्तमितोदित— कोई पुरुष प्रारम्भ में सम्पदा -विहीन होता है, किन्तु जीवन के अन्त में उन्नति को प्राप्त
चातुरन्त