Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
२. युक्त और अयुक्तरूप- कोई पुरुष युक्त होकर भी अयुक्तरूप वाला होता है। ३. अयुक्त और युक्तरूप- कोई पुरुष अयुक्त होकर भी युक्तरूप वाला होता है। ४. अयुक्त और अयुक्तरूप- कोई पुरुष अयुक्त होकर भी अयुक्तरूप वाला होता है (३८६)।
३८७- [चत्तारि गया पण्णत्ता, तं जहा—जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे]।
पुनः हाथी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. युक्त और युक्तशोभ— कोई हाथी युक्त होकर युक्तशोभा वाला होता है। २. युक्त और अयुक्तशोभ— कोई हाथी युक्त होकर भी अयुक्तशोभा वाला होता है। ३. अयुक्त और युक्तशोभ– कोई हाथी अयुक्त होकर भी युक्तशोभा वाला होता है। ४. अयुक्त और अयुक्तशोभ— कोई हाथी अयुक्त होकर भी अयुक्तशोभा वाला होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. युक्त और युक्तशोभ— कोई पुरुष युक्त होकर युक्तशोभा वाला होता है। . २. युक्त और अयुक्तशोभ— कोई पुरुष युक्त होकर भी अयुक्तशोभा वाला होता है। ३. अयुक्त और युक्तशोभ- कोई पुरुष अयुक्त होकर भी युक्तशोभा वाला होता है।
४. अयुक्त और अयुक्तशोभ- कोई पुरुष अयुक्त होकर भी अयुक्तशोभा वाला होता है (३८७)। ' पथ-उत्पथ-सूत्र
३८८– चत्तारि जुग्गारिता पण्णत्ता, तं जहा-पंथजाई णाममेगे णो उप्पहजाई, उप्पहजाई णाममेगे णो पंथजाई, एगे पंथजाईवि उप्पहजाईवि, एगे णो पंथजाई णो उप्पहजाई।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा पंथजाई णाममेगे णो उप्पहजाई, उप्पहजाई णाममेगे णो पंथजाई, एगे पंथजाईवि उप्पहजाईवि, एगे णो पंथजाई णो उप्पहजाई।
युग्य (जोते जानेवाले घोड़े आदि) का ऋत (गमन) चार प्रकार का कहा गया है, जैसे१. पथयायी, न उत्पथयायी- कोई युग्य मार्गगामी होता है, किन्तु उन्मार्गगामी नहीं होता। २. उत्पथयायी, न पथयायी— कोई युग्य उन्मार्गगामी होता है, किन्तु मार्गगामी नहीं होता। ३. पथयायी-उत्पथयायी— कोई युग्य मार्गगामी भी होता है और उन्मार्गगामी भी होता है। ४. न पथयायी, न उत्पथयायी— कोई युग्य न मार्गगामी होता है और न उन्मार्गगामी होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. पथयायी, न उत्पथयायी— कोई पुरुष मार्गगामी होता है, किन्तु उन्मार्गगामी नहीं होता। २. उत्पथयायी, न पथयायी— कोई पुरुष उन्मार्गगामी होता है, किन्तु मार्गगामी नहीं होता। ३. पथयायी-उत्पथयायी- कोई पुरुष मार्गगामी भी होता है और उन्मार्गगामी भी होता है।