Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
असती= एक पसती। दो पसती = एक सेतिका । दो सेतिका = १ कुडव । ४ कुडव = एक प्रस्थ । चार प्रस्थ = एक आढक | ४ आढक= १ द्रोण । ६० आढक = एक जघन्य कुम्भ । ८० आढक = एक मध्यम कुम्भ । १०० आढक = एक उत्कृष्ट कुम्भ । इस प्राचीन माप के अनुसार ४० मन का एक कुम्भ होता है। इस कुम्भ प्रमाण मोतियों से बनी माला को कुम्भिक मुक्तादाम कहा जाता है। अर्धकुम्भ का प्रमाण २० मन जानना चाहिए।
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उन प्रेक्षागृह-मण्डपों के आगे चार मणिपीठिकाएं कही गई हैं। उन मणिपीठिकाओं के ऊपर चार चैत्यस्तूप हैं। उन चैत्यस्तूपों में से प्रत्येक प्रत्येक पर चारों दिशाओं में चार-चार मणिपीठिकाएं हैं। उन मणिपीठिकाओं पर सर्वरत्नमय, पर्यङ्कासन जिन - प्रतिमाएं अवस्थित हैं और उनका मुख स्तूप के सामने हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं—
१. ऋषभा, २. वर्धमाना, ३. चन्द्रानना, ४ वारिषेणा ।
उन चैत्यस्तूपों के आगे मणिपीठिकाएं हैं। उन मणिपीठिकाओं के ऊपर चार चैत्यवृक्ष हैं। उन चैत्यवृक्षों के आगे चार मणिपीठिकाएं हैं। उन मणिपीठिकाओं के ऊपर चार महेन्द्रध्वज हैं। उन महेन्द्रध्वजों के आगे चार नन्दा पुष्करिणियाँ हैं । उन पुष्करिणियों में से प्रत्येक के आगे चारों दिशाओं में चार वनषण्ड कहे गये हैं। जैसें
१. पूर्ववनखण्ड, २. दक्षिणवनखण्ड, ३. पश्चिमवनषण्ड, ४. उत्तरवनषण्ड ।
१. पूर्व में अशोकवन, २. दक्षिण में सप्तपर्णवन, ३. पश्चिम में चम्पकवन और ४. उत्तर में आम्रवन कहा गया
३४० -- तत्थ णं जे से पुरत्थिमिल्ले अंजणगपव्वते, तस्स णं चउद्दिसिं चत्तारि णंदाओ पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा—णंदुत्तरा णंदा, आणंदा, दिवद्धणा । ताओ णं णंदाओ क्खरिणीओ एवं जोयणसयसहस्सं आयामेणं, पण्णासं जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, दसजोयणसताई उव्वेहेणं ।
तासिं णं पुक्खरिणीणं पत्तेय - पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता । तेसिं णं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरतो चत्तारि तोरणा पण्णत्ता, तं जहा—पुरत्थमे णं दाहिणे णं, पच्चत्थिमे णं, उत्तरे णं ।
तासिं णं पुक्खरिणीणं पत्तेयं - पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि वणसंडा पण्णत्ता, तं जहा — पुरतो, दाहिणे णं, पच्चत्थिमे णं उत्तरे णं ।
संग्रहणी-गाथा
पुवेणं असोगवणं, दाहिणओ होइ सत्तवण्णवणं ।
अवरे णं चंपगवणं, चूयवणं उत्तरे पासे ॥ १ ॥
T
तासिं णं पुक्खरिणीणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि दधिमुहगपव्वया पण्णत्ता । ते णं दधिमुहगपव्वया चउसट्ठि जोयणसहस्साइं उड्डुं उच्चत्तेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, सव्वत्थ समा पल्लगसंठाणसंठिता, दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, एक्कतीसं जोयणसहस्साइं छच्च तेवीसे जोयणसते परिक्खेवेणं; सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ।
सिंणं दधिमुहगपव्वताणं उवरिं बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता । सेसं जहेव अंजणगपव्वताणं