Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
२७८
स्थानाङ्गसूत्रम्
४. अक्षेम और अक्षेम- कोई मार्ग आदि में भी अक्षेम और अन्त में भी अक्षेम होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. क्षेम और क्षेम- कोई पुरुष आदि में क्षेम क्रोधादि (उपद्रव से रहित) होता है और अन्त में भी क्षेम होता
है।
२. क्षेम और अक्षेम- कोई पुरुष आदि में क्षेम होता है, किन्तु अन्त में अक्षेम होता है। ३. अक्षेम और क्षेम- कोई पुरुष आदि में अक्षेम होता है, किन्तु अन्त में क्षेम होता है। ४. अक्षेम और अक्षेम- कोई पुरुष आदि में भी अक्षेम होता है और अन्त में भी अक्षेम होता है (२६७)।
उक्त चारों भंगों की बाहर से क्षमाशील और अंतरंग से भी क्षमाशील तथा बाहर से क्रोधी और अंतरंग से भी क्रोधी इत्यादि रूप में व्याख्या समझनी चाहिए। इस व्याख्या के अनुसार प्रथम भंग में द्रव्य-भावलिंगी साधु, दूसरे में द्रव्यलिंगी साधु, तीसरे में निह्नव और चौथे में अन्यतीर्थिकों का समावेश होता है। आगे भी इसी प्रकार जानना चाहिए। __२६८–चत्तारि मग्गा पण्णत्ता, तं जहा खेमे णाममेगे खेमरूवे, खेमे णाममेगे अखेमरूवे, अखेमे णाममेगे खेमरूवे, अखेमे णाममेगे अखेमरूवे।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा खेमे णाममेगे खेमरूवे, खेमे णाममेगे अखेमरूवे, अखेमे णाममेगे खेमरूवे, अखेमे णाममेगे अखेमरूवे।
पुनः मार्ग चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. क्षेम और क्षेमरूप- कोई मार्ग क्षेम और क्षेम रूप (आकार) वाला होता है। २. क्षेम और अक्षेमरूप— कोई मार्ग क्षेम, किन्तु अक्षेमरूप वाला होता है। ३. अक्षेम और क्षेमरूप- कोई मार्ग अक्षेम, किन्तु क्षेमरूप वाला होता है। ४. अक्षेम और अक्षेमरूप- कोई मार्ग अक्षेम और अक्षेमरूप वाला होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. क्षेम और क्षेमरूप- कोई पुरुष क्षेम और क्षेमरूप वाला होता है। २. क्षेम और अक्षेमरूप— कोई पुरुष क्षेम, किन्तु अक्षेमरूप वाला होता है। ३. अक्षेम और क्षेमरूप- कोई पुरुष अक्षेम, किन्तु क्षेमरूप वाला होता है।
४. अक्षेम और अक्षेमरूप- कोई पुरुष अक्षेम और अक्षेमरूप वाला होता है (२६८)। वाम-दक्षिण-सूत्र
२६९- चत्तारि संवुक्का पण्णत्ता, तं जहा—वामे णाममेगे वामावत्ते, वामे णाममेगे दाहिणावत्ते, दाहिणे णाममेगे वामावत्ते, दाहिणे णाममेगे दाहिणावत्ते।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—वामे णाममेगे वामावत्ते, वामे णाममेगे दाहिणावत्ते, दाहिणे णाममेगे वामावत्ते, दाहिणे णाममेगे दाहिणावत्ते।
शंख चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. वाम और वामावर्त— कोई शंख वाम (वाम पार्श्व में स्थित या प्रतिकूल गुण वाला) और वामावर्त (बाईं ओर घुमाव वाला) होता है।