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चतुर्थ स्थान- द्वितीय उद्देश
२८१ ३. दक्षिण और वामावर्त— कोई वनषण्ड दक्षिण, किन्तु वामावर्त होता है। ४. दक्षिण और दक्षिणावर्त— कोई वनषण्ड दक्षिण और दक्षिणावर्त होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. वाम और वामावर्त— कोई पुरुष वाम और वामावर्त होता है। २. वाम और दक्षिणावर्त— कोई पुरुष वाम, किन्तु दक्षिणावर्त होता है। ३. दक्षिण और वामावर्त—कोई पुरुष दक्षिण, किन्तु वामावर्त होता है।
४. दक्षिण और दक्षिणावर्त— कोई पुरुष दक्षिण और दक्षिणावर्त होता है (२७३)। निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी-सूत्र
__२७४- चउहिं ठाणेहिं णिग्गंथे णिग्गंथिं आलवमाणे वा संलवमाणे वा णातिक्कमति, तं जहा—१. पंथं पुच्छमाणे वा, २. पंथं देसमाणे वा, ३. असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दलेमाणे वा, ४. असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा, दलावेमाणे वा।
निर्ग्रन्थ चार कारणों से निर्ग्रन्थी के साथ आलाप-संलाप करता हुआ निर्ग्रन्थाचार का उल्लंघन नहीं करता है। . जैसे
१. मार्ग पूछता हुआ। २. मार्ग बताता हुआ। ३. अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य देता हुआ।
४. गृहस्थों के घर से अशन, पान, खान और स्वाद्य दिलाता हुआ (२७४)। तमस्काय-सूत्र
२७५- तमुक्कायस्स णं चत्तारि णामधेजा पण्णत्ता, तं जहा तमेति वा तमुक्काएति वा, अंधकारेति वा, महंधकारेति वा।
तमस्काय के चार नाम कहे गये हैं। जैसे१. तम, २. तमस्काय, ३. अन्धकार, ४. महान्धकार (२७५)।
२७६- तमुक्कायस्स णं चत्तारि णामधेजा पण्णत्ता, तं जहा लोगंधगारेति वा, लोगतमसेति वा, देवंधगारेति वा देवतमसेति वा।
पुनः तमस्काय के चार नाम कहे गये हैं, जैसे१. लोकान्धकार, २. लोकतम, ३. देवान्धकार, ४. देवतम (२७६)।
२७७- तमुक्कायस्स णं चत्तारि णामधेजा पण्णत्ता, तं जहावातफलिहेति वा, वातफलिहखोभेति वा, देवरण्णेति वा, देववूहेति वा।
पुनः तमस्काय के चार नाम कहे गये हैं, जैसे— १. वातपरिघ, २. वातपरिघक्षोभ, ३. देवारण्य, ४. देवव्यूह (२७७)।