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चतुर्थ स्थान- द्वितीय उद्देश
२९३ वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा—चंदपव्वते, सूरपव्वते, देवपव्वते, णागपव्वते।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पश्चिम भाग में सीतोदा महानदी के उत्तरी किनारे पर चार वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं, जैसे
१. चन्द्रपर्वत, २. सूर्यपर्वत, ३. देवपर्वत, ४. नागपर्वत (३१३)।
३१४- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स चउसु विदिसासु चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा—सोमणसे, विजुप्पभे, गंधमायणे, मालवंते।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत की चार विदिशाओं में चार वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं, जैसे
१. सौमनस, २. विद्युत्प्रभ, ३. गन्धमादन, ४. माल्यवान् (३१४)। शलाका-पुरुष-सूत्र
३१५– जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे जहण्णपए चत्तारि अरहंता चत्तारि चक्कवट्टी चत्तारि बलदेवा चत्तारि वासुदेवा उप्पग्जिसु वा उप्पजंति वा उप्पजिस्संति वा।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह क्षेत्र में कम से कम चार अर्हन्त, चार चक्रवर्ती, चार बलदेव और चार वासुदेव उत्पन्न हुए थे, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे (३१५)। मन्दर-पर्वत-सूत्र
३१६- जंबुद्दीवे. दीवे मंदरे पव्वते चत्तारि वणा पण्णत्ता, तं जहा–भद्दसालवणे, णंदणवणे, सोमणसवणे, पंडगवणे।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत पर चार वन कहे गये हैं, जैसे१. भद्रशाल वन, २. नन्दन वन, ३. सौमनस वन, ४. पण्डक वन (३१६)।
३१७– जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वते पंडगवणे चत्तारि अभिसेगसिलाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—पंडुकंबलसिला, अइपंडुकंबलसिला, रत्तकंबलसिला, अतिरत्तकंबलसिला।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत पर पण्डक वन में चार अभिषेकशिलाएं कही गई हैं, जैसे१. पाण्डुकम्बल शिला, २. अतिपाण्डुकम्बल शिला, ३. रक्तकम्बल शिला, ४. अतिरक्तकम्बल शिला (३१७)। ३१८- मंदरचूलिया णं उवरि चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं पण्णत्ता।
मन्दर पर्वत की चूलिका का ऊपरी विष्कम्भ (विस्तार) चार योजन कहा गया है (३१८)। धातकीषण्ड-पुष्करवर-सूत्र
३१९- एवं धायइसंडदीवपुरथिमद्धेवि कालं आदिं करेत्ता जाव मंदरचूलियत्ति। एवं जाव पुक्खरवरदीवपच्चत्थिमद्धे जाव मंदरचूलियत्ति।