Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ स्थान- द्वितीय उद्देश
२७७ विवेचन- 'अलमस्तु' का दूसरा अर्थ है- निषेधक अर्थात् निषेध करने वाला, कुकृत्य में प्रवृत्ति को रोकने वाला। इसकी चौभंगी भी उक्त प्रकार से ही समझ लेनी चाहिए। ऋजु-वक्र-सूत्र
२६६– चत्तारि मग्गा पण्णत्ता, तं जहा—उज्जू णाममेगे उज्जू, उज्जू णाममेगे वंके, वंके णाममेगे उज्जू, वंके णाममेगे वंके।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—उज्जू णाममेगे उज्जू, उज्जू णाममेगे वंके, वंके णाममेगे उज्जू, वंके णाममेगे वंके।
मार्ग चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. ऋजु और ऋजु— कोई मार्ग ऋजु (सरल) दिखता है और सरल ही होता है। २. ऋजु और वक्र— कोई मार्ग ऋजु दिखता है, किन्तु वक्र होता है। ३. वक्र और ऋजु– कोई मार्ग वक्र दिखता है, किन्तु ऋजु होता है। ४. वक्र और वक्र— कोई मार्ग वक्र दिखता है और वक्र ही होता है। इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. ऋजु और ऋजु— कोई पुरुष सरल दिखता है और सरल ही होता है। २. ऋजु और वक्र— कोई पुरुष सरल दिखता है, किन्तु कुटिल होता है। ३. वक्र और ऋजु– कोई पुरुष कुटिल दिखता है, किन्तु सरल होता है। ४. वक्र और वक्र— कोई पुरुष कुटिल दिखता है और कुटिल होता है (२६६)।
विवेचन- ऋजु का अर्थ सरल या सीधा और वक्र का अर्थ कुटिल है। कोई मार्ग आदि में सीधा और अन्त में भी सीधा होता है, इस प्रकार से मार्ग के शेष भंगों को भी जानना चाहिए। पुरुष पक्ष में संस्कृत टीकाकार ने दो प्रकार से अर्थ किया है। जैसे
(१) प्रथम प्रकार- १. कोई पुरुष प्रारम्भ में ऋजु प्रतीत होता है और अन्त में भी ऋजु निकलता है, इस प्रकार से शेष भंगों का भी अर्थ करना चाहिए।
(२) द्वितीय प्रकार—१. कोई पुरुष ऊपर से ऋजु दिखता है और भीतर से भी ऋजु होता है। इस प्रकार से शेष भंगों का अर्थ करना चाहिए। क्षेम-अक्षेम-सूत्र
२६७- चत्तारि मग्गा पण्णत्ता, तं जहा खेमे णाममेगे खेमे, खेमे णाममेगे अखेमे, अखेमे णाममेगे खेमे, अखेमे णाममेगे अखेमे।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा खेमे णाममेगे खेमे, खेमे णाममेगे अखेमे, अखेमे णाममेगे खेमे, अखेमे णाममेगे अखेमे।
पुनः मार्ग चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. क्षेम और क्षेम- कोई मार्ग आदि में भी क्षेम (निरुपद्रव) होता है और अन्त में भी क्षेम होता है। २. क्षेम और अक्षेम- कोई मार्ग आदि में क्षेम, किन्तु अन्त में अक्षेम (उपद्रव वाला) होता है। ३. अक्षेम और क्षेम- कोई मार्गआदि में अक्षेम, किन्तु अन्त में क्षेम होता है।