Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
४. जो न अपने में अज्ञान और क्रोध उत्पन्न करे, न दूसरे में।
२६३-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—आयंदमे णाममेगे णो परंदमे, परंदमे णाममेगे णो आयंदमे, एगे आयंदमेवि परंदमेवि, एगे णो आयंदमे णो परंदमे।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. आत्म-दम, किन्तु पर-दम नहीं— जो अपना दमन करे, किन्तु दूसरे का दमन न करे। २. पर-दम, किन्तु आत्म-दम नहीं— जो पर का दमन करे, किन्तु अपना दमन न करे। ३. आत्म-दम भी और पर-दम भी- जो अपना दमन भी करे और पर का दमन भी करे।
४. न आत्म-दम, न पर-दम- जो न अपना दमन करे और न पर का दमन करे (२६३)। गर्हा-सूत्र
२६४- चउव्विहा गरहा पण्णत्ता, तं जहा—उवसंपज्जामित्तेगा गरहा, वितिगिच्छामित्तेगा गरहा, जंकिंचिमिच्छामित्तेगा गरहा, एवंपि पण्णत्तेगा गरहा ।
गर्दा चार प्रकार की कही गई है। जैसे
१. उपसम्पदारूप गर्दा— अपने दोष को निवेदन करने के लिए गुरु के समीप जाऊं, इस प्रकार का विचार करना, यह एक गर्दा है।
२. विचिकित्सारूप गर्दा— अपने निन्दनीय दोषों का निराकरण करूं, इस प्रकार का विचार करना, यह दूसरी गर्दा है।
३. मिच्छामिरूप गर्दा— जो कुछ मैंने असद् आचरण किया है, वह मेरा मिथ्या हो, इस प्रकर के विचार से प्रेरित हो ऐसा कहना यह तीसरी गर्दा है।
४. एवमपि प्रज्ञत्तिरूप गर्दा- ऐसा भी भगवान् ने कहा है कि अपने दोष की गर्दा (निन्दा) करने से भी किये गये दोष की शुद्धि होती है, ऐसा विचार करना, यह चौथी गर्दा है (२६४)। अलमस्तु (निग्रह)-सूत्र
२६५- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अप्पणो णाममेगे अलमंथू भवति णो परस्स, परस्स णाममेगे अलमंथू भवति णो अप्पणो, एगे अप्पणोवि अलमंथू भवति परस्सवि, एगे णो अप्पणो अलमंथू भवति णो परस्स।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे
१. आत्म-अलमस्तु, पर-अलमस्तु नहीं— कोई पुरुष अपना निग्रह करने में समर्थ होता है, किन्तु दूसरे का निग्रह करने में समर्थ नहीं होता।
२. पर-अलमस्तु, आत्म-अलमस्तु नहीं— कोई पुरुष दूसरे का निग्रह करने में समर्थ होता है, अपना निग्रह करने में समर्थ नहीं होता।
३. आत्म-अलमस्तु भी और पर-अलमस्तु भी— कोई पुरुष अपना निग्रह करने में भी समर्थ होता है और पर के निग्रह करने में भी समर्थ होता है।
४. न आत्म-अलमस्तु, न पर-अलमस्तु— कोई पुरुष न अपना निग्रह करने में समर्थ होता है और न पर का निग्रह करने में समर्थ होता है (२६५)।