Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
२. आर्य और अनार्यपर्याय— कोई पुरुष जाति से आर्य, किन्तु अनार्यपर्याय वाला होता है। ३. अनार्य और आर्यपर्याय- कोई पुरुष जाति से अनार्य, किन्तु आर्यपर्याय वाला होता है। ४. अनार्य और अनार्यपर्याय— कोई पुरुष जाति से अनार्य और अनार्यपर्याय वाला होता है (२२६)।
२२७- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अजे णाममेगे अज्जपरियाले, अजे णाममेगे अणजपरियाले, अणजे णाममेगे अजपरियाले, अणजे णाममेगे अणजपरियाले।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. आर्य और आर्यपरिवार— कोई पुरुष जाति से आर्य और आर्यपरिवार वाला होता है। २. आर्य और अनार्यपरिवार- कोई पुरुष जाति से आर्य, किन्तु अनार्यपरिवार वाला होता है। ३. अनार्य और आर्यपरिवार- कोई पुरुष जाति से अनार्य, किन्तु आर्यपरिवार वाला होता है। ४. अनार्य और अनार्यपरिवार- कोई पुरुष जाति से अनार्य और अनार्यपरिवार वाला होता है (२२७)।
२२८– चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अजे णाममेगे अजभावे, अज्जे णाममेगे अणजभावे, अणजे णाममेगे अजभावे, अणजे णाममेगे अणजभावे।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. आर्य और आर्यभाव– कोई पुरुष जाति से आर्य और आर्यभाव (क्षायिकदर्शनादि गुण) वाला होता है। २. आर्य और अनार्यभाव– कोई पुरुष जाति से आर्य, किन्तु अनार्यभाव (क्रोधादि युक्त) वाला होता है। ३. अनार्य और आर्यभाव- कोई पुरुष जाति से अनार्य, किन्तु आर्यभाव वाला होता है।
४. अनार्य और अनार्यभाव– कोई पुरुष जाति से अनार्य और अनार्यभाव वाला होता है (२२८)। जाति-सूत्र
२२९-चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा—जातिसंपण्णे, कुलसंपण्णे, बलसंपण्णे, रूवसंपण्णे।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जातिसंपण्णे, जाव [कुलसंपण्णे, बलसंपण्णे] रूवसंपण्णे।
वृषभ (बैल) चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. जातिसम्पन्न, २. कुलसम्पन्न, ३. बलसम्पन्न (भारवहन के सामर्थ्य से सम्पन्न), ४. रूपसम्पन्न (देखने में सुन्दर)।
इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. जातिसम्पन्न, २. कुलसम्पन्न, ३. बलसम्पन्न, ४. रूपसम्पन्न (२२९)।
विवेचन— मातृपक्ष को जाति कहते हैं और पितृपक्ष को कुल कहते हैं। सामर्थ्य को बल और शारीरिक सौन्दर्य को रूप कहते हैं । बैलों में ये चारों धर्म पाये जाते हैं और उनके समान पुरुषों में भी ये धर्म पाये जाते हैं।
२३०- चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा—जातिसंपण्णे णामं एगे णो कुलसंपण्णे, कुलसंपण्णे णाम एगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि कुलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो कुलसंपण्णे।