Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
परभव में स्वर्गादि के सुख भोगता है। ३. परभव में उपार्जित पुण्य के फल को तीर्थंकरादि इस भव में भोगते हैं । ४. पूर्व भव में उपार्जित पुण्य कर्म के फल से देव भव में स्थित तीर्थंकरादि अग्रिम भव में तीर्थंकरादि रूप से उत्पन्न होकर भोगते हैं।
___ इस प्रकार पाप और पुण्य के फल प्रकाशित करने वाली निर्वेदनी कथा के दो प्रकारों से निरूपण का आशय जानना चाहिए। कृश-दृढ़-सूत्र
२५१- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—किसे णाममेगे किसे, किसे णाममेगे दढे, दढे णाममेगे किसे, दढे णाममेगे दढे।
पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. कृश और कृश— कोई पुरुष शरीर से भी कृश होता है और मनोबल से भी कृश होता है। अथवा पहले भी कृश और पश्चात् भी कृश होता है।
२. कृश और दृढ— कोई पुरुष शरीर से कृश होता है, किन्तु मनोबल से दृढ होता है। ३. दृढ और कृश– कोई पुरुष शरीर से दृढ होता है, किन्तु मनोबल से कृश होता है। ४. दृढ और दृढ— कोई पुरुष शरीर से दृढ होता है और मनोबल से भी दृढ होता है (२५१)।
२५२– चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—किसे णाममेगे किससरीरे, किसे णाममेगे दढसरीरे, दढे णाममेगे किससरीरे, दढे णाममेगे दढसरीरे।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कृश और कृशशरीर— कोई पुरुष भावों से कृश होता है और शरीर से भी कृश होता है। २. कृश और दृढशरीर— कोई पुरुष भावों से कृश होता है, किन्तु शरीर से दृढ़ होता है। ३. दृढ और कृशशरीर— कोई पुरुष भावों से दृढ होता है, किन्तु शरीर से कृश होता है। ४. दृढ और दृढशरीर— कोई पुरुष भावों से दृढ होता है और शरीर से भी दृढ होता है (२५२)।
२५३-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा किससरीरस्स णाममेगस्स णाणदंसणे समुप्पज्जति णो दढसरीरस्स, दढसरीरस्स णाममेगस्स णाणदंसणे समुप्पजति णो किससरीरस्स, एगस्स किससरीरस्सवि णाणदंसणे समुप्पजति दढसरीरस्सवि, एगस्स णो किससरीरस्स णाणदंसणे समुप्पजति णो दढसरीरस्स।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. किसी कृश शरीर वाले पुरुष के विशिष्ट ज्ञान-दर्शन उत्पन्न होते हैं, किन्तु दृढ शरीर वाले के नहीं उत्पन्न होते।
२. किसी दृढ शरीर वाले पुरुष के विशिष्ट ज्ञान-दर्शन उत्पन्न होते हैं, किन्तु कृश शरीर वाले के नहीं उत्पन्न होते।
३. किसी कृश शरीर वाले पुरुष के भी विशिष्ट ज्ञान-दर्शन उत्पन्न होते हैं और दृढ शरीर वाले के भी उत्पन्न