Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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२. काष्ठशिला— सूखे वृक्ष का या काठ का समतल भाग, तख्त आदि ।
३. यथासंसृत — घास, पलाल (पियांर) आदि जो उपयोग के योग्य हो (४२२) ।
स्थानाङ्गसूत्रम्
४२३—–— [ पडिमापडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पंति तओ संथारगा अणुण्णवेत्तए, तं जहा पुढविसिला, कट्ठसिला, अहासंथडमेव ।
प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को तीन प्रकार के संस्तारकों की अनुज्ञा लेना कल्पता है— पृथ्वीशिला, काष्ठशिला और यथासंसृत संस्तारक की (४२३) ।
४२४– पडिमापडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पंति तओ संथारगा उवाइणित्तए, तं जहा पुढविसिला, कट्ठसिला, अहासंथडमेव ] ।
प्रतिमा- प्रतिपन्न अनगार को तीन प्रकार के संस्तारकों का उपयोग करना कल्पता है— पृथ्वीशिला, काष्ठशिला और यथासंसृत संस्तारक का (४२४) । ]
काल-सूत्र
४२५— तिविहे काले पण्णत्ते, तं जहा—तीए, पडुप्पण्णे, अणागए । ४२६ – तिविहे समए पण्णत्ते, तं जहाती, पडुप्पण्णे, अणागए । ४२७ — एवं आवलिया आणापाणू थोवे लवे मुहुत्ते अहोरत्ते जाव वाससतसहस्से पुव्वंगे पुव्वे जाव ओसप्पिणी । ४२८ – तिविधे पोग्गलपरियट्टे पण्णत्ते, तं जहा— तीते, पडुप्पण्णे, अणागए।
काल तीन प्रकार का कहा गया है— अतीत (भूत - काल), प्रत्युत्पन्न (वर्तमान) काल और अनागत (भविष्य ) काल (४२५) । समय तीन प्रकार का कहा गया है—अतीत, प्रत्युत्पन्न और अनागतसमय ( ४२६ ) । इसी प्रकार आवलिका, आन-प्राण (श्वासोच्छ्वास) स्तोक, लव, मुहूर्त, अहोरात्र ( दिन-रात ) यावत् लाख वर्ष, पूर्वाङ्ग, पूर्व यावत् अवसर्पिणी तीन-तीन प्रकार की जानना चाहिए (४२७) । पुद्गल - परावर्त तीन प्रकार का कहा गया है— अतीतपुद्गल-परावर्त, प्रत्युत्पन्न - पुद्गल - परावर्त और अनागत - पुद्गल परावर्त (४२८) ।
वचन - सूत्र
४२९ – तिविहे वयणे पण्णत्ते, तं जहा— एगवयणे, दुवयणे, बहुवयणे । अहवा—तिविहे वयणे पण्णत्ते, तं जहा — इत्थिवयणे, पुंवयणे, णपुंसगवयणे । अहवा—तिविहे वयणे पण्णत्ते, तं जहा—तीतवयणे, पडुप्पण्णवयणे, अणागयवयणे ।
वचन तीन प्रकार के कहे गये हैं— एकवचन, द्विवचन और बहुवचन । अथवा वचन तीन प्रकार के कहे गये हैं— स्त्रीवचन, पुरुषवचन और नपुंसकवचन । अथवा वचन तीन प्रकार के कहे गये हैं— अतीत वचन, प्रत्युत्पन्न - वचन और अनागत - वचन. (४२९) ।
ज्ञानादिप्रज्ञापना- सम्यक्-सूत्र
४३० – तिविहा पण्णवणा पण्णत्ता, तं जहा णाणपण्णवणा, दंसणपण्णवणा, चरित्त