Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे
१. कोई पुरुष आम (आयु और श्रुताभ्यास से अपक्व) होने पर भी आम-मधुर फल के समान उपशम भावादि रूप अल्प-मधुर स्वभाव वाला होता है।
२. कोई पुरुष आम (आयु और श्रुताभ्यास से अपक्व) होने पर भी पक्व-मधुर फल के समान प्रकृष्ट उपशम भाववाला और अत्यन्त मधुर स्वभावी होता है।
३. कोई पुरुष पक्व (आयु और श्रुताभ्यास से परिपुष्ट) होने पर भी आम-मधुर फल के समान अल्पउपशम भाववाला और अल्प मधुर स्वभावी होता है।
४. कोई पुरुष पक्व (आयु और श्रुताभ्यास से परिपुष्ट) होकर पक्व मधुर-फल के समान प्रकृष्ट उपशम वाला और अत्यन्त मधुर स्वभावी होता है (१०१)। सत्य-मृषा-सूत्र
१०२– चउव्विहे सच्चे पण्णत्ते, तं जहा—काउन्जुयया, भासुजुयया, भावुजुयया, अविसंवायणाजोगे।
सत्य चार प्रकार का कहा गया है। जैसे१. काय-ऋजुता-सत्य-काय के द्वारा सरल सत्य वस्तु का संकेत करना। २. भाषा-ऋजुता-सत्य वचन के द्वारा यथार्थ वस्तु का प्रतिपादन करना। ३. भाव-ऋजुता-सत्य- मन में सरल सत्य कहने का भाव रखना।
४. अविसंवादना-योग-सत्य–विसंवाद-रहित, किसी को धोखा न देने वाली मन, वचन, काय की प्रवृत्ति रखना (१०२)।
१०३– चउव्विहे मोसे पण्णत्ते, तं जहा कायअणुजुयया, भासअणुज्जुयया, भावअणुज्जुयया, विसंवादणाजोगे।
मृषा (असत्य) चार प्रकार का कहा गया है। जैसे१. काय-अनृजुकता-मृषा— काय के द्वारा असत्य (सत्य को छिपाने वाला) संकेत करना। २. भाषा-अनृजुकता-मृषा- वचन के द्वारा अयथार्थ वस्तु का प्रतिपादन करना। ३. भाव-अनृजुकता-मृषा- मन में कुटिलता रख कर असत्य कहने का भाव रखना।
४. विसंवादना-योग-मृषा-विसंवाद-युक्त, दूसरों को धोखा देने वाली मन, वचन, काय की प्रवृत्ति रखना (१०३)। प्रणिधान-सूत्र
१०४- चउब्विहे पणिधाणे पण्णत्ते, तं जहा—मणपणिधाणे, वइपणिधाणे, कायपणिधाणे, उवकरणपणिधाणे। एवं—णेरइयाणं पंचिंदियाणं जाव वेमाणियाणं।
प्रणिधान (मन आदि का प्रयोग) चार प्रकार का कहा गया है। जैसे