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________________ २३० स्थानाङ्गसूत्रम् इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे १. कोई पुरुष आम (आयु और श्रुताभ्यास से अपक्व) होने पर भी आम-मधुर फल के समान उपशम भावादि रूप अल्प-मधुर स्वभाव वाला होता है। २. कोई पुरुष आम (आयु और श्रुताभ्यास से अपक्व) होने पर भी पक्व-मधुर फल के समान प्रकृष्ट उपशम भाववाला और अत्यन्त मधुर स्वभावी होता है। ३. कोई पुरुष पक्व (आयु और श्रुताभ्यास से परिपुष्ट) होने पर भी आम-मधुर फल के समान अल्पउपशम भाववाला और अल्प मधुर स्वभावी होता है। ४. कोई पुरुष पक्व (आयु और श्रुताभ्यास से परिपुष्ट) होकर पक्व मधुर-फल के समान प्रकृष्ट उपशम वाला और अत्यन्त मधुर स्वभावी होता है (१०१)। सत्य-मृषा-सूत्र १०२– चउव्विहे सच्चे पण्णत्ते, तं जहा—काउन्जुयया, भासुजुयया, भावुजुयया, अविसंवायणाजोगे। सत्य चार प्रकार का कहा गया है। जैसे१. काय-ऋजुता-सत्य-काय के द्वारा सरल सत्य वस्तु का संकेत करना। २. भाषा-ऋजुता-सत्य वचन के द्वारा यथार्थ वस्तु का प्रतिपादन करना। ३. भाव-ऋजुता-सत्य- मन में सरल सत्य कहने का भाव रखना। ४. अविसंवादना-योग-सत्य–विसंवाद-रहित, किसी को धोखा न देने वाली मन, वचन, काय की प्रवृत्ति रखना (१०२)। १०३– चउव्विहे मोसे पण्णत्ते, तं जहा कायअणुजुयया, भासअणुज्जुयया, भावअणुज्जुयया, विसंवादणाजोगे। मृषा (असत्य) चार प्रकार का कहा गया है। जैसे१. काय-अनृजुकता-मृषा— काय के द्वारा असत्य (सत्य को छिपाने वाला) संकेत करना। २. भाषा-अनृजुकता-मृषा- वचन के द्वारा अयथार्थ वस्तु का प्रतिपादन करना। ३. भाव-अनृजुकता-मृषा- मन में कुटिलता रख कर असत्य कहने का भाव रखना। ४. विसंवादना-योग-मृषा-विसंवाद-युक्त, दूसरों को धोखा देने वाली मन, वचन, काय की प्रवृत्ति रखना (१०३)। प्रणिधान-सूत्र १०४- चउब्विहे पणिधाणे पण्णत्ते, तं जहा—मणपणिधाणे, वइपणिधाणे, कायपणिधाणे, उवकरणपणिधाणे। एवं—णेरइयाणं पंचिंदियाणं जाव वेमाणियाणं। प्रणिधान (मन आदि का प्रयोग) चार प्रकार का कहा गया है। जैसे
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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