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________________ चतुर्थ स्थान- प्रथम उद्देश २३१ १. मनः- प्रणिधान, २. वाक् प्रणिधान, ३. काय प्रणिधान, ४. उपकरण- प्रणिधान (लौकिक तथा लोकोत्तर वस्त्र- पात्र आदि उपकरणों का प्रयोग) । ये चारों प्रणिधान नारकों से लेकर वैमानिक तक के सभी पंचेन्द्रिय दण्डकों में कहे गये हैं (१०४)। १०५ चउव्विहे सुप्पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा— मणसुप्पणिहाणे, जाव [ वइसुप्पणिहाणे, कायसुप्पणिहाणे ], उवगरणसुप्पणिहाणे । एवं संजयमणुस्सणवि । सुप्रणिधान (मन आदि का शुभ प्रवर्तन) चार प्रकार का कहा गया है। जैसे— १. मन:- सुप्रणिधान, २. वाक्- सुप्रणिधान, ३. काय सुप्रणिधान, ४. उपकरण - सुप्रणिधान । ये चारों सुप्रणिधान संयम के धारक मनुष्यों के कहे गये हैं (१५० ) । १०६— चउव्विहे दुप्पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा— मणदुष्पणिहाणे, जाव [ वइदुप्पणिहाणे, कायदुपणिहाणे ], उवकरणदुप्पणिहाणे । एवं पंचिंदियाणं जाव वेमाणियाणं । दुष्प्रणिधान (असंयम के लिए मन आदि का प्रवर्तन) चार प्रकार का कहा गया है। जैसे— १. मनः- दुष्प्रणिधान, २. वाक्- दुष्प्रणिधान, ३. काय - दुष्प्रणिधान, ४. उपकरण - दुष्प्रणिधान । ये चारों दुष्प्रणिधान नारकों से लेकर वैमानिक तक के सभी पंचेन्द्रिय दण्डकों में कहे गये हैं (१०६) । आपात -संवास - सूत्र १०७- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा – आवातभद्दए णाममेगे णो संवासभद्दए, संवासभद्दए णाममेगे णो आवातभद्दए, एगे आवातभद्दएवि संवासभद्दएवि, एगे णो आवातभद्दए णो संवासभद्दए । पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे— १. कोई पुरुष आपात-भद्रक होता है, संवास-भद्रक नहीं । (प्रारम्भ में मिलने पर भला दिखता है, किन्तु साथ रहने पर भला नहीं लगता ) । २. कोई पुरुष संवास-भद्रक होता है, आपात - भद्रक नहीं। (प्रारम्भ में मिलने पर भला नहीं दिखता, किन्तु साथ रहने पर भला लगता है)। ३. कोई पुरुष आपात - भद्रक भी होता है और संवास - भद्रक भी होता है । ४. कोई पुरुष न आपात - भद्रक होता है और न संवास-भद्रक ही होता है (१०७) । वर्ण्य-सूत्र १०८ - चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा अप्पणो णाममेगे वज्जं पासति णो परस्स, परस्स णाममेगे वज्जं पासति णो अप्पणो, एगे अप्पणोवि वज्जं पासति परस्सवि, एगे णो अप्पणो वज्जं पासति णो परस्स । पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे— १. कोई पुरुष (पश्चात्तापयुक्त होने से ) अपना वर्ज्य देखता है, दूसरे का नहीं।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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