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चतुर्थ स्थान- प्रथम उद्देश
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१. मनः- प्रणिधान, २. वाक् प्रणिधान, ३. काय प्रणिधान, ४. उपकरण- प्रणिधान (लौकिक तथा लोकोत्तर वस्त्र- पात्र आदि उपकरणों का प्रयोग) । ये चारों प्रणिधान नारकों से लेकर वैमानिक तक के सभी पंचेन्द्रिय दण्डकों में कहे गये हैं (१०४)।
१०५ चउव्विहे सुप्पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा— मणसुप्पणिहाणे, जाव [ वइसुप्पणिहाणे, कायसुप्पणिहाणे ], उवगरणसुप्पणिहाणे । एवं संजयमणुस्सणवि ।
सुप्रणिधान (मन आदि का शुभ प्रवर्तन) चार प्रकार का कहा गया है। जैसे—
१. मन:- सुप्रणिधान, २. वाक्- सुप्रणिधान, ३. काय सुप्रणिधान, ४. उपकरण - सुप्रणिधान । ये चारों सुप्रणिधान संयम के धारक मनुष्यों के कहे गये हैं (१५० ) ।
१०६— चउव्विहे दुप्पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा— मणदुष्पणिहाणे, जाव [ वइदुप्पणिहाणे, कायदुपणिहाणे ], उवकरणदुप्पणिहाणे । एवं पंचिंदियाणं जाव वेमाणियाणं ।
दुष्प्रणिधान (असंयम के लिए मन आदि का प्रवर्तन) चार प्रकार का कहा गया है। जैसे—
१. मनः- दुष्प्रणिधान, २. वाक्- दुष्प्रणिधान, ३. काय - दुष्प्रणिधान, ४. उपकरण - दुष्प्रणिधान । ये चारों दुष्प्रणिधान नारकों से लेकर वैमानिक तक के सभी पंचेन्द्रिय दण्डकों में कहे गये हैं (१०६) । आपात -संवास
- सूत्र
१०७- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा – आवातभद्दए णाममेगे णो संवासभद्दए, संवासभद्दए णाममेगे णो आवातभद्दए, एगे आवातभद्दएवि संवासभद्दएवि, एगे णो आवातभद्दए णो संवासभद्दए ।
पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे—
१. कोई पुरुष आपात-भद्रक होता है, संवास-भद्रक नहीं । (प्रारम्भ में मिलने पर भला दिखता है, किन्तु साथ रहने पर भला नहीं लगता ) ।
२. कोई पुरुष संवास-भद्रक होता है, आपात - भद्रक नहीं। (प्रारम्भ में मिलने पर भला नहीं दिखता, किन्तु साथ रहने पर भला लगता है)।
३.
कोई पुरुष आपात - भद्रक भी होता है और संवास - भद्रक भी होता है ।
४. कोई पुरुष न आपात - भद्रक होता है और न संवास-भद्रक ही होता है (१०७) ।
वर्ण्य-सूत्र
१०८ - चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा अप्पणो णाममेगे वज्जं पासति णो परस्स, परस्स णाममेगे वज्जं पासति णो अप्पणो, एगे अप्पणोवि वज्जं पासति परस्सवि, एगे णो अप्पणो वज्जं पासति णो परस्स ।
पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे—
१. कोई पुरुष (पश्चात्तापयुक्त होने से ) अपना वर्ज्य देखता है, दूसरे का नहीं।