________________
चतुर्थ स्थान – प्रथम उद्देश
२२९ ९८– चत्तारि पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—खुड्डिया मोयपडिमा, महल्लिया मोयपडिमा, जवमज्झा, वइरमज्झा।
पुनः प्रतिमा चार प्रकार की कही गई हैं। जैसे१. छोटी मोकप्रतिमा, २. बड़ी मोकप्रतिमा, ३. यवमध्या, ४. वज्रमध्या।
इन सभी प्रतिमाओं का विवेचन दूसरे स्थान के प्रतिमापद में किया जा चुका है (९८)। अस्तिकाय-सूत्र
९९- चत्तारि अस्थिकाया अजीवकाया पण्णत्ता, तं जहा—धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए।
चार अस्तिकाय द्रव्य अजीवकाय कहे गये हैं। जैसे१. धर्मास्तिकाय, २. अधर्मास्तिकाय, ३. आकाशास्तिकाय, ४. पुद्गलास्तिकाय (९९)।
विवेचन- ये चारों द्रव्य तीनों कालों में पाये जाने से 'अस्ति' कहलाते हैं और बहुप्रदेशी होने से 'काय' कहे जाते हैं अथवा अस्तिकाय अर्थात् प्रदेशों का समूहरूप द्रव्य । इन चारों द्रव्यों में दोनों धर्म पाये जाने से वे अस्तिकाय कहे गये हैं।
१००- चत्तारि अस्थिकाया अरूविकाया पण्णत्ता, तं जहा—धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवत्थिकाए।
चार अस्तिकाय द्रव्य अरूपीकाय कहे गये हैं। जैसे१. धर्मास्तिकाय, २. अधर्मास्तिकाय, ३. आकाशास्तिकाय, ४. जीवास्तिकाय (१००)।
विवेचन-जिनमें रूप, रसादि पाये जाते हैं, ऐसे पुद्गल द्रव्य को रूपी कहते हैं। इन धर्मास्तिकाय आदि चारों द्रव्यों में रूपादि नहीं पाये जाते हैं, अतः ये अरूपी काय कहे गये हैं। आम-पक्व-सूत्र
__१०१- चत्तारि फला पण्णत्ता, तं जहा—जहा आमे णाममेगे आममहुरे, आमे णाममेगे पक्कमहुरे, पक्के णाममेगे आममहुरे, पक्के णाममेगे पक्कमहुरे।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–आमे णाममेगे आममहुरफलसमाणे, आमे णाममेगे पक्कमहुरफलसमाणे, पक्के णाममेगे आममहुरफलसमाणे, पक्के णाममेगे पक्कमहुरफलसमाणे।
फल चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई फल (आम) होकर भी आम-मधुर (अल्प मिष्ट) होता है। २. कोई फल आम होकर के भी पक्व-मधुर (पके फल के समान अत्यन्त मिष्ट) होता है। ३. कोई फल पक्व होकर के भी आम-मधुर (अल्प मिष्ट) होता है। ४. कोई फल पक्व होकर के पक्व-मधुर (अत्यन्त मिष्ट) होता है।