Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ स्थान- प्रथम उद्देश
२३७ १२४– चउव्विहा देवा पण्णत्ता, तं जहा—भवणवासी, वाणमंतरा, जोइसिया, विमाणवासी। देव चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. भवनवासी, २. वानव्यन्तर, ३. ज्योतिष्क, ४. विमानवासी (१२४)।। प्रमाण-सूत्र
१२५- चउव्विहे पमाणे पण्णत्ते, तं जहा—दव्वप्पमाणे, खेत्तप्पमाणे, कालप्पमाणे, भावप्पमाणे। प्रमाण चार प्रकार का कहा गया है, जैसे१. द्रव्य-प्रमाण- द्रव्य का प्रमाण बताने वाली संख्या आदि। २. क्षेत्र-प्रमाण — क्षेत्र का माप करने वाले दण्ड, धनुष, योजन आदि। ३. काल-प्रमाण- काल का माप करने वाले आवलिका मुहूर्त आदि।
४. भाव-प्रमाण प्रत्यक्षादि प्रमाण और नैगमादिनय (१२५)। महत्तरि-सूत्र
१२६- चत्तारि दिसाकुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—रूया, रूयंसा, सुरूवा, रूयावती।
दिक्कुमारियों की चार महत्तरिकाएं कही गई हैं, जैसे
१. रूपा, २. रूपांशा, ३. सुरूपा, ४. रूपवती। (ये चारों स्वयं महत्तरिका अर्थात् प्रधानतम हैं अथवा दिक्कुमारियों में प्रधानतम हैं (१२६)।)
१२७ – चत्तारि विज्जुकुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा चित्ता, चित्तकणगा, सतेरा, सोयामणी।
विद्युत्कुमारियों की चार महत्तरिकाएं कही गई हैं, जैसे
१. चित्रा, २. चित्रकनका, ३. सतेरा, ४. सौदामिनी (१२७)। देवस्थिति-सूत्र
१२८– सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो मज्झिमपरिसाए देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता।
देवेन्द्र देवराज शक्रेन्द्र की मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति चार पल्योपम की कही गई है (१२८)। १२९- ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो मज्झिमपरिसाए देवीणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिती
पण्णत्ता।
देवेन्द्र देवराज इशानेन्द्र की मध्यम परिषद् की देवियों की स्थिति चार पल्योपम की कही गई है (१२९)।