Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
दुर्गति-सुगति-सूत्र
१३८- चत्तारि दुग्गतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा—णेरइयदुग्गती, तिरिक्खजोणियदुग्गती, मणुस्सदुग्गती, देवदुग्गती।
दुर्गतियां चार प्रकार की कही गई हैं। जैसे१. नैरयिक-दुर्गति, २. तिर्यग्-योनिक-दुर्गति, ३. मनुष्य-दुर्गति, ४. देव-दुर्गति (१३८)।
१३९– चत्तारि सोग्गईओ पण्णत्ताओ, तं जहा—सिद्धसोग्गती, देवसोग्गती, मणुयसोग्गती, सुकुलपच्चायाती।
सुगतियां चार प्रकार की कही गई हैं, जैसे१. सिद्ध-सुगति, २. देव-सुगति, ३. मनुष्य-सुगति, ४. सुकुल-सुगति (१३९)।
१४०– चत्तारि दुग्गता पण्णत्ता, तं जहा—णेरइयदुग्गता, तिरिक्खजोणियदुग्गता, मणुयदुग्गता, देवदुग्गता।
दुर्गत (दुर्गति में उत्पन्न होने वाले जीव) चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. नैरयिक-दुर्गत, २. तिर्यग्योनिक-दुर्गत, ३. मनुष्य-दुर्गत, ४. देव-दुर्गत (१४०)।
१४१- चत्तारि सुग्गता पण्णत्ता, तं जहा सिद्धसुग्गता, जाव [ देवसुग्गता, मणुयसुग्गता], सुकुलपच्चायाया।
सुगत (सुगति में उत्पन्न होने वाले जीव) चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे- .
१. सिद्धसुगत, २. देवसुगत, ३. मनुष्यसुगत, ४. सुकुल-उत्पन्न जीव (१४१)। कर्मांश-सूत्र
१४२– पंढमसमयजिणस्स णं चत्तारि कम्मंसा खीणा भवंति, तं जहा—णाणावरणिजं, दंसणावरणिजं मोहणिजं, अंतराइयं।
प्रथम समयवर्ती केवली जिनके चार (सत्कर्म कर्मांश सत्ता में स्थित कर्म) क्षीण हो चुके होते हैं, जैसे१. ज्ञानावरणीय सत्-कर्म, २. दर्शनावरणीय सत्-कर्म, ३. मोहनीय सत्-कर्म, ४. आन्तरायिक सत्-कर्म
(१४२)।
१४३– उप्पण्णणाणदंसणधरे णं अरहा जिणे केवली चत्तारि कम्मंसे वेदेति, तं जहावेदणिजं, आउयं, णाम, गोतं।
उत्पन्न हुए केवलज्ञान-दर्शन के धारक केवली जिन अर्हन्त चार सत्कर्मों का वेदन करते हैं, जैसे१. वेदनीय कर्म, २. आयु कर्म, ३. नाम कर्म, ४. गोत्र कर्म (१४३)।
१४४– पढसमयसिद्धस्स णं चत्तारि कम्मंसा जुगवं खिजंति, तं जहा वेयणिजं, आउयं, णाम, गोतं।