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चतुर्थ स्थान- द्वितीय उद्देश
२५३ ३. अदीन और दीनमन– कोई पुरुष दीन नहीं होकर के भी दीन मनवाला होता है। ४. अदीन और अदीनमन- कोई पुरुष न दीन है और न दीन मनवाला होता है (१९७)।
१९८ – चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—दीणे णाममेगे दीणसंकप्पे, दीणे णाममेगे अदीणसंकप्पे, अदीणे णाममेगे दीणसंकप्पे, अदीणे णाममेगे अदीणसंकप्पे।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. दीन और दीनसंकल्प- कोई पुरुष दीन होता है और दीन संकल्पवाला भी होता है। २. दीन और अदीन संकल्प- कोई पुरुष दीन होकर भी दीन संकल्पवाला नहीं होता है। ३. अदीन और दीन संकल्प- कोई पुरुष दीन नहीं होकर के भी दीन संकल्पवाला होता है। ४. अदीन और अदीन संकल्प- कोई पुरुष न दीन है और न दीन संकल्पवाला होता है (१९८)।
१९९-- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–दीणे णाममेगे दीणपण्णे, दीणे णाममेगे अदीणपण्णे, अदीणे णाममेगे दीणपण्णे, अदीणे णाममेगे अदीणपण्णे।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. दीन और दीनप्रज्ञ-कोई पुरुष दीन है और दीन प्रज्ञावाला होता है। २. दीन और अदीनप्रज्ञ— कोई पुरुष दीन होकर के भी दीन प्रज्ञावाला नहीं होता। ३. अदीन और दीनप्रज्ञ- कोई पुरुष दीन नहीं होकर के भी दीनप्रज्ञावाला होता है। ४. अदीन और अदीनप्रज्ञ- कोई पुरुष न दीन है और न दीनप्रज्ञावाला होता है (१९९)।
२००- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–दीणे णाममेगे दीणदिट्ठी, दीणे णाममेगे अदीणदिट्ठी, अदीणे णाममेगे दीणदिट्ठी, अदीणे णाममेगे अदीणदिट्ठी।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. दीन और दीनदृष्टि — कोई पुरुष दीन है और दीन दृष्टिवाला होता है। २. दीन और अदीनदृष्टि- कोई पुरुष दीन होकर भी दीनदृष्टि वाला नहीं होता है। ३. अदीन और दीनदृष्टि- कोई पुरुष दीन नहीं होकर भी दीनदृष्टि वाला होता है। ४. अदीन और अदीनदृष्टि- कोई पुरुष न दीन है और न दीनदृष्टिवाला होता है (२००)।
२०१–चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—दीणे णाममेगे दीणसीलाचारे, दीणे णाममेगे अदीणसीलाचारे, अदीणे णाममेगे दीणसीलाचारे, अदीणे णाममेगे अदीणसीलाचारे।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. दीन और दीन शीलाचार- कोई पुरुष दीन है और दीन शील-आचार वाला है। २. दीन और अदीन शीलाचार- कोई पुरुष दीन होकर भी दीन शील-आचार वाला नहीं होता। ३. अदीन और दीन शीलाचार- कोई पुरुष दीन नहीं होकर भी दीन शील-आचार वाला होता है। ४. अदीन और अदीन शीलाचार- कोई पुरुष न दीन है और न दीन शील-आचार वाला होता है (२०१)।