Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ स्थान द्वितीय उद्देश
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२०६ - चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा— दीणे णाममेगे दीणभासी, दीणे णाममेगे अदीणभासी, अदीणे णाममेगे दीणभासी, अदीणे णाममेगे अदीणभासी ।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे—
१. दीन और दीनभाषी— कोई पुरुष दीन है और दीनभाषा बोलनेवाला होता है।
२. दीन और अदीनभाषी— कोई पुरुष दीन होकर भी दीनभाषा नहीं बोलनेवाला होता है।
३. अदीन और दीनभाषी— कोई पुरुष दीन नहीं होकर भी दीनभाषा बोलनेवाला होता है।
४. अदीन और अदीनभाषी— कोई पुरुष न दीन है और न दीनभाषा बोलनेवाला होता है ( २०६) ।
२०७ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा दीणे णाममेगे दीणोभासी, दीणे णाममेगे अदीणोभासी, अदीणे णाममेगे दीणोभासी, अदीणे णाममेगे अदीणोभासी ।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे—
१. दीन और दीनावभासी— कोई पुरुष दीन है और दीन के समान जान पड़ता है। २. दीन और अदीनावभासी— कोई पुरुष दीन होकर भी दीन नहीं जान पड़ता है। ३. अदीन और दीनावभासी— कोई पुरुष दीन नहीं होकर भी दीन जान पड़ता है। ४. अदीन और अदीनावभासी— कोई पुरुष न दीन है और न दीन जान पड़ता है ( २०७) ।
२०८ - चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा दीणे णाममेगे दीणसेवी, दीणे णाममेगे अदीणसेवी, अदीणे णाममेगे दीणसेवी, अदीणे णाममेगे अदीणसेवी ।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे
१. दीन और दीनसेवी— कोई पुरुष दीन है और दीनपुरुष (नायक- स्वामी) की सेवा करता है ।
२. दीन और अदीनसेवी— कोई पुरुष दीन होकर अदीन पुरुष की सेवा करता है ।
३. अदीन और दीनसेवी— कोई पुरुष अदीन होकर भी दीन पुरुष की सेवा करता है।
४. अदीन और अदीनसेवी— कोई पुरुष न दीन है और न दीन पुरुष की सेवा करता है ( २०८)।
२०९ – एवं [ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा— दीणे णाममेगे दीणपरियार, दीणे
णाममेगे अदीणपरियाए, अदीणे णाममेगे दीणपरियाए, अदीणे णाममेगे अदीणपरियाए । ]
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे—
१. दीन और दीनपर्याय— कोई पुरुष दीन है और दीन पर्याय (अवस्था) वाला होता है।
२. दीन और अदीनपर्याय— कोई पुरुष दीन होकर भी दीन पर्यायवाला नहीं होता है ।
३. अदीन और दीनपर्याय— कोई पुरुष दीन न होकर दीन पर्यायवाला होता है ।
४. अदीन और अदीनपर्याय—कोई पुरुष न दीन है और न दीन पर्यायवाला होता है ( २०९) ।
२१० – चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा दीणे णाममेगे दीणपरियाले, दीणे णाममेगे अदीणपरियाले, अदीणे णाममेगे दीणपरियाले, अदीणे णाममेगे अदीणपरियाले । [ सव्वत्थ चउब्धंगो। ]
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे