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चतुर्थ स्थान- प्रथम उद्देश
महोरगराज महोरगेन्द्र अतिकाय की चार अग्रमहिषियां कही गई हैं। जैसे१. भुजगा, २. भुजगवती, ३. महाकक्षा, ४. स्फुटा (१७१)। १७२- एवं महाकायस्सवि। इसी प्रकार महाकाय की भी चार अग्रमहिषियां कही गई हैं (१७२)।
१७३– गीतरतिस्स णं गंधव्विदस्स [गंधव्वरण्णो ? ] चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-सुघोसा, विमला, सुस्सरा, सरस्सती।
गन्धर्वराज गन्धर्वेन्द्र गीतरति की चार अग्रमहिषियां कही गई हैं, जैसे१. सुघोषा, २. विमला, ३. सुस्वरा, ४. सरस्वती (१७३)। १७४— एवं गीयजसस्सवि। इसी प्रकार गीतयश की भी चार अग्रमहिषियां कही गई हैं (१७४)।
१७५- चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहाचंदप्पभा, दोसिणाभा, अच्चिमाली पभंकरा।
ज्योतिष्कराज ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र की चार अग्रमहिषियां कही गई हैं, जैसे१. चन्द्रप्रभा, २. ज्योत्स्नाभा, ३. अर्चिमालिनी, ४. प्रभंकरा (१७५)। १७६–एवं सूरस्सवि, णवरं—सूरप्पभा, दोसिणाभा, अच्चिमाली, पभंकरा।
इसी प्रकार ज्योतिष्कराज ज्योतिष्केन्द्र सूर्य की भी चार अग्रमहिषियां कही गई हैं। केवल नाम इस प्रकार हैं१. सूर्यप्रभा, २. ज्योत्स्नाभा, ३. अर्चिमालिनी, ४. प्रभंकरा (१७६)।।
१७७- इंगालस्स णं महागहस्स चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- विजया, वेजयंती, जयंती, अपराजिया।
महाग्रह अंगार की चार अग्रमहिषियां कही गई हैं, जैसे१. विजया, २. वैजयन्ती, ३. जयन्ती, ४. अपराजिता (१७७)। १७८-- एवं सव्वेसिं महग्गहाणं जाव भावकेउस्स। इसी प्रकार भावकेतु तक के सभी महाग्रहों की चार-चार अग्रमहिषियां कही गई हैं (१७८)।
१७९- सक्कस्स णं देविंदस्स देवरणो सोमस्म महारण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा रोहिणी , मयणा, चित्ता, सामा।
देवराज देवेन्द्र शक्र के लोकपाल महाराज सोम की चार अग्रमहिषियां कही गई हैं, जैसे१. रोहिणी, २. मदना, ३. चित्रा, ४. सोमा (१७९)। १८०- एवं जाव वेसमणस्स।