Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ स्थान- प्रथम उद्देश
२४९ १. गुप्त होकर गुप्त — कोई पुरुष वस्त्रों की वेष-भूषा से भी गुप्त (ढंका)होता है और उसकी इन्द्रियां भी गुप्त (वशीभूत काबू में)होती हैं।
२. गुप्त होकर अगुप्त – कोई पुरुष वस्त्र से गुप्त होता है, किन्तु उसकी इन्द्रियां गुप्त नहीं होती । ३. अगुप्त होकर गुप्त - कोई पुरुष वस्त्र से अगुप्त होता है, किन्तु उसकी इन्द्रियां गुप्त होती हैं। ४. अगुप्त होकर अगुप्त - कोई पुरुष न वस्त्र से ही गुप्त होता है और न उसकी इन्द्रियां गुप्त होती है (१८६)।
१८७- चत्तारि कूडागारसालाओ पण्णत्ताओ, तं जहा गुत्ता णाममेगा गुप्तदुवारा, गुत्ता णाममेगा अगुत्तदुवारा,अगुत्ता णाममेगा गुत्तदुवारा, अगुत्ता णाममेगा अगुत्तदुवारा।
एवामेव चत्तारित्थीओ पण्णत्ताओ, तं जहा—गुत्ता णाममेगा गुत्तिंदिया, गुत्ता णाममेगा अगुत्तिंदिया, अगुत्ता णाममेगा गुत्तिंदिया, अगुत्ता णाममेगा अगुत्तिंदिया।
चार प्रकार की कूटागार -शालाएं कही गई हैं, जैसे१. गुप्त होकर गुप्तद्वार— कोई कूटागार-शाला परकोटे से गुप्त और गुप्त द्वार वाली होती है। २. गुप्त होकर अगुप्तद्वार – कोई शाला परकोटे से गुप्त, किन्तु अगुप्त द्वारवाली होती है। ३. अगुप्त होकर गुप्तद्वार— कोई कूटागार-शाला परकोटे से अगुप्त, किन्तु गुप्तद्वार वाली होती है। ४. अगुप्त होकर अगुप्तद्वार —कोई कूटागार -शाला न परकोटे वाली होती है और न उसके द्वार ही गुप्त होते
इसी प्रकार स्त्रियां भी चार प्रकार की कही गई हैं, जैसे१. गुप्त होकर गुप्तेन्द्रिय- कोई स्त्री वस्त्र से भी गुप्त होती है और गुप्त इन्द्रियवाली भी होती है। २. गुप्त होकर अगुप्तेन्द्रिय – कोई स्त्री वस्त्र से गुप्त होकर भी गुप्त इन्द्रियवाली नही होती। ३. अगुप्त होकर गुप्तेन्द्रिय- कोई स्त्री वस्त्र से अगुप्त होकर भी गुप्त इन्द्रियवाली होती है।
४. अगुप्त होकर अगुप्तेन्द्रिय- कोई स्त्री न वस्त्र से गुप्त होती है और न उसकी इन्द्रियां ही गुप्त होती हैं (१८७)। अवगाहना-सूत्र
१८८- चउविहा ओगाहणा पण्णत्ता, तं जहा—दव्वोगाहणा, खेत्तोगाहणा, कालोगाहणा, भावोगाहणा।
अवगाहना चार प्रकार की कही गई है, जैसे१. द्रव्यावगाहना, २. क्षेत्रावगाहना, ३. कालावगाहना, ४. भावावगाहना (१८८)।
विवेचन— जिसमें जीवादि द्रव्य अवगाहन करें, रहें या आश्रय को प्राप्त हों, उसे अवगाहना कहते हैं। जिस द्रव्य का जो शरीर या आकार है वही उसकी द्रव्यावगाहना है। अथवा विवक्षित द्रव्य के आधारभूत आकाश-प्रदेशों में द्रव्यों की जो अवगाहना है, वही द्रव्यावगाहना है। इसी प्रकार आकाशरूप क्षेत्र को क्षेत्रावगाहना, मनुष्यक्षेत्ररूप समय की अवगाहना को कालावगाहना और भाव (पर्यायों) वाले द्रव्यों की अवगाहना को भावावगाहना जानना चाहिए।