Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
बलि के- १. सोम, २. यम, ३. वैश्रमण, ४. वरुण। धरण के-१. कालपाल, २. कोलपाल, ३. सेलपाल, ४. शंखपाल। भूतानन्द के- १. कालपाल, २. कोलपाल, ३. शंखपाल, ४. सेलपाल। वेणुदेव के- १. चित्र, २. विचित्र, ३. चित्रपक्ष, ४. विचित्रपक्ष। वेणुदालि के- १. चित्र, २. विचित्र, ३. विचित्रपक्ष, ४. चित्रपक्ष। हरिकान्त के- १. प्रभ, २. सुप्रभ, ३. प्रभकान्त, ४. सुप्रभकान्त। हरिस्सह के-१. प्रभ, २. सुप्रभ, ३. सुप्रभकान्त, ४. प्रभकान्त। अग्निशिख के- १. तेज, २. तेजशिख, ३. तेजस्कान्त, ४. तेजप्रभ। अग्निमाणव के- १. तेज, २. तेजशिख, ३. तेजप्रभ, ४. तेजस्कान्त। पूर्ण के- १. रूप, २. रूपांश, ३. रूपकान्त, ४. रूपप्रभ। विशिष्ट के- १. रूप, २. रूपांश, ३. रूपप्रभ, ४. रूपकान्त। जलकान्त के-१.जल, २. जलरत, ३. जलप्रभ, ४. जलकान्त। जलप्रभ के-१. जल, २. जलरत, ३. जलकान्त, ४. जलप्रभ। अमितगति के— १. त्वरितगति, २. क्षिप्रगति, ३. सिंहगति, ४. सिंहविक्रमगति। अमितवाहन के-१. त्वरितगति, २. क्षिप्रगति, ३. सिंहविक्रमगति, ४. सिंहगति। वेलम्ब के- १. काल, २. महाकाल, ३. अंजन, ४. रिष्ट। प्रभंजन के-१. काल, २. महाकाल, ३. रिष्ट, ४. अंजन। घोष के– १. आवर्त, २. व्यावर्त, ३. नन्दिकावर्त, ४. महानन्दिकावर्त। महाघोष के- १. आवर्त, २. व्यावर्त, ३. महानन्दिकावर्त, ४. नन्दिकावर्त। इसी प्रकार शक्रेन्द्र के- १. सोम, २. यम, ३. वरुण, ४. वैश्रमण। ईशानेन्द्र के- १. सोम, २. यम, ३. वैश्रमण, ४. वरुण।
तथा आगे एकान्तरित यावत् अच्युतेन्द्र के चार-चार लोकपाल कहे गये हैं। अर्थात माहेन्द्र, लान्तक. सहस्रार. आरण और अच्युत के—१. सोम, २. यम, ३. वरुण, ४. वैश्रमण ये चार-चार लोकपाल है (१२२)। .
विवेचन— यहां इतना विशेष ज्ञातव्य है कि दक्षिणेन्द्र के तीसरे लोकपाल का जो नाम है, वह उत्तरेन्द्र के चौथे लोकपाल का नाम है। इसी प्रकार शक्रेन्द्र के जिस नाम वाले लोकपाल हैं उसी नाम वाले सनत्कुमार, ब्रह्मलोक, शुक्र और प्राणतेन्द्र के लोकपाल हैं तथा ईशानेन्द्र के जिस नाम वाले लोकपाल हैं, उसी नामवाले माहेन्द्र, लान्तक, सहस्रार और अच्युतेन्द्र के लोकपाल हैं। देव-सूत्र
१२३– चउव्विहा वाउकुमारा पण्णत्ता, तं जहा—काले, महाकाले, वेलंबे, पभंजणे। वायुकुमार चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. काल, २. महाकाल, ३. वेलम्ब, ४. प्रभंजन। (ये चार पातालकलशों के स्वामी हैं) (१२३)।