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स्थानाङ्गसूत्रम्
१. क्रोध से, २. मान से, ३. माया से और ४. लाभ से।
इसी प्रकार वैमानिक तक के सभी दण्डक वाले जीवों ने भूतकाल में आठों कर्मप्रकृतियों का संचय किया है (९२)।
९३– जीवा णं चउहि ठाणेहिं अट्ठकम्मपगडीओ चिणंति, तं जहा–कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं। एवं जाव वेमाणियाणं।
जीव चार कारणों से आठों कर्मप्रकृतियों का वर्तमान में संचय कर रहे हैं। जैसे— १. क्रोध से, २. मान से, ३. माया से और ४. लाभ से।
इसी प्रकार वैमानिकों तक के सभी दण्डक वाले जीव वर्तमान में आठों कर्मप्रकृतियों का संचय कर रहे हैं (९३)।
९४– जीवा णं चउहि ठाणेहिं अट्ठकम्मपगडीओ चिणिस्संति, तं जहा—कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं। एवं जाव वेमाणियाणं।
जीव चार कारणों से भविष्य में आठों कर्मप्रकृतियों का संचय करेंगे। जैसे१. क्रोध से, २. मान से, ३. माया से और ४. लाभ से।
इसी प्रकार वैमानिक तक के सभी दण्डक वाले जीव भविष्य में चारों कारणों से आठों प्रकार की कर्मप्रकृतियों का संचय करेंगे (९४)।
९५-एवं-उवचिणिंसु उवचिणंति उवचिणिस्संति, बंधिंसु बंधंति बंधिस्संति, उदीरिसु उदीरिति उदीरिस्संति, वेदेंसु वेदेति वेदिस्संति, णिजरेंसु णिज्जरेंति णिजरिस्संति जाव वेमाणियाणं। [एवमेकेक्कपदे तिन्नि तिन्नि दंडगा भाणियव्वा]।
इसी प्रकार वैमानिक तक के सभी दण्डक वाले जीवों ने आठों कर्म-प्रकृतियों का उपचय किया है, कर रहे हैं और करेंगे। आठों कर्म-प्रकृतियों का बन्ध किया है, कर रहे हैं और करेंगे। आठों कर्मप्रकृतियों की उदीरणा की है, कर रहे हैं और करेंगे। आठों कर्म-प्रकृतियों को वेदा (भोगा) है, वेद रहे हैं और वेदन करेंगे तथा आठों कर्मप्रकृतियों की निर्जरा की है, कर रहे हैं और करेंगे (९५)। प्रतिमा-सूत्र
९६- चत्तारि पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा समाहिपडिमा, उवहाणपडिमा, विवेगपडिमा, विउस्सग्गपडिमा।
प्रतिमा चार प्रकार की कही गई हैं। जैसे— १. समाधिप्रतिमा, २. उपधानप्रतिमा, ३. विवेकप्रतिमा, ४. व्युत्सर्गप्रतिमा (९६)। ९७- चत्तारि पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—भद्दा, सुभद्दा, महाभद्दा, सव्वतोभद्दा। पुनः प्रतिमा चार प्रकार की कही गई हैं। जैसे१. भद्रा, २. सुभद्रा, ३. महाभद्रा, ४. सर्वतोभद्रा (९७)।